
पौराणिक ग्रन्थों में योगीश्वर श्रीकृष्ण के चरित्र हनन का प्रयास
| | 14 Aug 2017 7:50 AM GMT
अशोक ''प्रवृद्ध'' वर्तमान में षोडश कलायुक्त योगीश्वर श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में अनेक सामाजिक ...
अशोक ''प्रवृद्ध''
वर्तमान में षोडश कलायुक्त योगीश्वर श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में अनेक सामाजिक विरुद्ध आचरण की कथाएँ प्रचलित हैं, जिन्हें संदर्भ बनाकर विधर्मी श्रीकृष्ण का उपहास उड़ाकर उनके चरित्र हनन का प्रयास करते देखे जाते हैं परन्तु उत्कट विद्वान स्वामी दयानंद सरस्वती ने श्रीकृष्ण चरित्र का गहन अध्ययन कर अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में श्रीकृष्ण के बारे में स्पष्ट कहा है कि पूरे महाभारत में श्री कृष्ण के चरित्र में कोई दोष नहीं मिलता एवं उन्हें आप्त पुरुष कहा हैं। स्वामी दयानंद श्री कृष्ण को महान विद्वान सदाचारी, कुशल राजनीतीज्ञ एवं सर्वथा निष्कलंक मानते हैं। फिर भी पौराणिक ग्रन्थों में श्रीकृष्ण के विषय में चोर, गोपिओं का जार अर्थात रमण करने वाला, कुब्जा से सम्भोग करने वाला, रणछोड़ आदि घटनाओं का उल्लेख अंकित मिलता है जो नि:सन्देह योगीश्वर श्रीकृष्ण के चरित्र के विषय में ऐसे मिथ्या आरोप ही हैं जो श्रीकृष्ण की प्रसिद्धि का जान -बूझकर किया गया अपमान व चरित्र हनन के प्रयास को ही सिद्ध करते हैं।महाभारत और श्रीकृष्ण से सम्बन्धित पौराणिक ग्रन्थों में प्राप्य श्रीकृष्ण कथाओं के समीचीन अध्ययन से ऐसा स्पष्ट होता है कि महाभारत का कृष्ण जो कि सर्वगुण सम्पन्न, समस्त पापसंस्पर्श शून्य आदर्श चरित्र था, भागवत और गीत-गोविन्द का कृष्ण, बालकाल्य में चोर- दधि और नवनीत चोर, किशोरावस्था में परगामी -असंख्य गोपियों को को पतिव्रत धर्म से भ्रष्ट करने वाला , प्रौढ़ आयु में वंचक और शठ- धोखा देकर द्रोणादि का प्राण हरण कराने वाला बन गया। महाभारत से लेकर पौराणिक ग्रन्थों तक की यात्रा में श्रीकृष्ण के चरित्र हनन के इस प्यास को स्पष्ट दृष्टिगोचर किया जा सकता है। श्रीकृष्ण की चरित्र हनन के प्रयास की यह पराकाष्ठा तो देखिए कि भागवत पुराण के पुराणकार ने तो केवल गोपियों की कल्पना ही की लेकिन गीत- गोविन्द के रचयिता ने एक राधा की भी रचना कर दी। भागवत पुराणकार लिखते हैं -
नद्या: पुलिनमाविष्य गोपीभिर्हिमवालुकम् ।
रेमे तत्तरत्नान्न्दकुमुदामोदवायुना ।।
बाहु प्रसार परिरम्भकरालकोरू-
नीवीस्तनालभाननर्मनखाग्रपापातै:
क्ष्वेल्यावलोकहसितैर्ब्रजसुन्दरीणा-
मुक्तम्भयन् रतिपर्ति रम्यांचकार ।।
भागवतपुराण 10/29/45-46
भगवान श्रीकृष्ण गोपियों के साथ यमुनाजी के पुलिन पर, जो श्वेत बालू पर हिम के समान चमक रही थी, चले गये। वहाँ वायु में कुमुदिनी की सुगन्ध से और शीतल तरंगों से ठंडक थी। उस स्थान पर आनन्दमय वातावरण में भगवान ने क्रीड़ा की। बाहें फैलाकर आलिंगन किया। और गोपियों के हाथों को दबाया। उनकी चोटी खैंची, जाँघें दबाईं, नीवीं खेंची, और स्तन छुए, नखों से कुरेदा, विनोदपूर्ण चितवन से देखा और मुस्कुराए। इस प्रकार वे उनमें कामोद्दीपन कर उनको आनन्दित करते रहे।
गीत गोविन्द के लेखक तो उससे भी बढ़ गए हैं। गीत गोविन्द में राधा विलाप करते हुए कहती है-
जलद पटलचलविन्दुविनिन्दकचन्दनतिलकललाटम् ।
पीनपयोधरपरिसरमर्दननिर्दयहृदयकपाटम्।।
-गीत गोविन्द 2-5
जिनके ललाट में लगा चन्दन मेघों के समूह से चंचल चन्द्रमा की निन्दा करता है और गोपियों के पुष्ट स्तनों के प्रान्त भाग में मर्दन करने में जिनका वक्ष स्थल दबता नहीं,ऐसे कृष्णचन्द्र को मेरा मन स्मरण करता है।
अब यहीं कृष्ण की भी सुन लीजिये-
मुग्धे ! विधेहि मयि निर्दयदन्तदंशं
दोर्बल्लिबन्धनि बिडस्तनपीड़नानि
चण्डि ! त्वमेव मुदमंचय पंचबाण
चण्डालकाण्डदलंनादसव: प्रयान्ति।।
गीत गोविन्द 10-10
हे सुन्दरी ! आप मुझे निर्दयता पूर्वक दांतों से काटिये। आप मुझे भुजा रूपी लताओं से बाँध अपने कठोर स्तनों से दबाइये। मुझ अपराधी के लिए यही दण्ड है। हे चण्डी! आप ही मुझको प्रसन्न करें। चाण्डाल कामदेव के वाणों से मेरे प्राण जा रहे हैं।यह पतन की सीमा हो गई। इसको अलंकार कहिए, मनुष्य के भीतर की चंचल प्रवृतियों का रूपक कहिए, किसी प्रकार की सफाई प्रस्तुत करिए, महाभारत के वीर, योगी, नीतिमान कृष्ण के नाम पर यह साहित्य रचना क्षम्य नहीं हो सकती थी और अभी हुई भी नहीं है। पुराणों में गोपियों से कृष्ण का रमण करने के सम्बन्ध में भी अंकित है। विष्णु पुराण अंश 5 अध्याय 13 श्लोक 59-60 में पुराणकार ने कहा है-
सोऽपि कैशोरकवयो मानयन् मधुसूदन: ।
रेमे ताभिरमेयात्मा क्षपासु क्षपिताहित: ।।
तद्भर्त्तृषु तथा तासु सर्व्वभूतेषु चेश्वर: ।
आत्मखरूपरूपोऽसौ व्याप्य सर्व्वमवस्थित: ।।
-विष्णु पुराण 5/13/59-60
वे गोपियाँ अपने पति, पिता और भाइयों के रोकने पर भी नहीं रूकती थी रोज रात्रि को वे रति विषय भोग की इच्छा रखने वाली कृष्ण के साथ रमण भोग किया करती थी। कृष्ण भी अपनी किशोर अवस्था का मान करते हुए रात्रि के समय उनके साथ रमण किया करते थे।
कृष्ण उनके साथ किस प्रकार रमण करते थे, यह भी पुराणों के रचियता ने श्रीकृष्ण को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हुए भागवत पुराण स्कन्द 10 अध्याय 33 शलोक 17 में लिखा हैं -
कृष्ण कभी उनका शरीर अपने हाथों से स्पर्श करते थे, कभी प्रेम भरी तिरछी चितवन से उनकी और देखते थे, कभी मस्त हो उनसे खुलकर हास विलास मजाक करते थे.जिस प्रकार बालक तन्मय होकर अपनी परछाई से खेलता हैं वैसे ही मस्त होकर कृष्ण ने उन ब्रज सुंदरियों के साथ रमण, काम क्रीड़ा विषय भोग किया। भागवतपुराण के पुराणकार नें स्कन्द 10 के अध्याय 29-33 में कृष्ण के सन्दर्भ में सामाजिक मर्यादा के विरूद्ध आचरण की कथाओं का विस्तृत विवरण अंकित किया है। इसी प्रकार राधा का नाम कृष्ण के साथ में लिया जाता हैं। सम्पूर्ण महाभारत में राधा का वर्णन तक नहीं मिलता। हाँ , राधा का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में अत्यंत अशोभनीय वृतांत के साथ मिलता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय 3 शलोक 59-62 लिखा हैं की गोलोक में कृष्ण की पत्नी राधा ने कृष्ण को पराई औरत के साथ पकड़ लिया तो शाप देकर कहा - हे कृष्ण ब्रज के प्यारे , तू मेरे सामने से चला जा तू मुझे क्यों दु:ख देता है। हे चंचल , हे अति लम्पट कामचोर मैंने तुझे जान लिया हैं। तू मेरे घर से चला जा। तू मनुष्यों की भांति मैथुन करने में लम्पट हैं, तुझे मनुष्यों की योनी मिले, तू गौलोक से भारत में चला जा। हे सुशीले, हे शाशिकले, हे पद्मावती, हे माधवों! यह कृष्ण धूर्त हैं इसे निकल कर बाहर करो, इसका यहाँ कोई काम नहीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय 15 में राधा का कृष्ण से रमण का अत्यंत अश्लील वर्णन अंकित है। ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय 72 में कुब्जा का कृष्ण के साथ सम्भोग भी अत्यंत अश्लील रूप में वर्णित हैं । पौराणिक ग्रन्थों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि राधा का कृष्ण के साथ सम्बन्ध भी भ्रामक हैं। राधा कृष्ण के बामांग से पैदा होने के कारण कृष्ण की पुत्री थी अथवा रायण से विवाह होने से कृष्ण की पुत्रवधु थी। चूँकि गोलोक में रायण कृष्ण के अंश से पैदा हुआ था इसलिए कृष्ण का पुत्र हुआ। जबकि पृथ्वी पर रायण कृष्ण की माता यशोदा का भाई था इसलिए कृष्ण का मामा हुआ जिससे राधा कृष्ण की मामी हुई।
पुराणों में गोपियों की उत्पति कथा भी अंकित है । पदम् पुराण उत्तर खंड अध्याय 245 के अनुसार त्रेतायुग में श्रीरामचंद्र दंडक -अरण्य वन में जब पहुचें तो उनके सुंदर स्वरुप को देखकर वहाँ के निवासी सारे ऋषि-मुनि उनसे भोग करने की इच्छा करने लगे। उन सारे ऋषिओं ने द्वापर के अंत में गोपियों के रूप में जन्म लिया और रामचंद्र जी कृष्ण बने तब उन गोपियों के साथ कृष्ण ने भोग किया। इससे उन गोपियों की मोक्ष हो गई ।वर्ना अन्य प्रकार से उनकी संसार रुपी भवसागर से मुक्ति कभी न होती। गोपियों की उत्पत्ति का यह दृष्टान्त भी बुद्धि से स्वीकार किये जाने योग्य नहीं हैं। पुराणों में वर्णित गोपिनों का चीरहरण करने, गोपियों के दुलारे, राधा के प्रेमी अथवा पति, रासलीला रचाने वाले कृष्ण के विषय की कथाएँ निश्चित रूप से मनगढ़ंत, असत्य हैं , इसमें सन्देह नहीं महाभारत के अनुसार योगिराज, निति निपुण , महान कूटनीतिज्ञ श्रीकृष्ण की केवल एक ही पत्नी थी जो की रुक्मणी थी, उनकी दो अथवा तीन या सोलह हजार पत्नियाँ होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। रुक्मिणी से विवाह के पश्चात श्रीकृष्ण रुक्मिणी के साथ बदरिक आश्रम चले गए और बारह वर्ष तक तप एवं ब्रहमचर्य का पालन करने के पश्चात उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम प्रदुमन था। श्रीकृष्ण के चरित्र के साथ सोलह हजार गोपियों के साथ जोड़ा जाना उनके चरित्र के साथ अन्याय है। स्वामी दयानद जी सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं पांड्वो द्वारा जब राजसूय यज्ञ किया गया तो श्रीकृष्ण को यज्ञ का सर्वप्रथम अर्ध्य प्रदान करने के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त समझा गया जबकि वहाँ पर अनेक ऋषि मुनि, साधू महात्मा आदि उपस्थित थे। वहीं श्रीकृष्ण की श्रेष्ठता इस बात से सिद्ध होती है कि उन्होंने सभी आगंतुक अतिथियों के धुल भरे पैर धोने का कार्य भार लिया। श्रीकृष्ण को सबसे बड़ा कूटनितिज्ञ भी इसीलिए कहा जाता हैं क्यूंकि उन्होंने बिना हथियार उठाये न केवल दुष्ट कौरव सेना का नाश कर दिया बल्कि धर्म की राह पर चल रहे पांडवो को विजय भी दिलवाई। ऐसे महान व्यक्तित्व पर चोर, लम्पट, रणछोर, व्यभिचारी, चरित्रहीन , कुब्जा से समागम करने वाला आदि कहना अन्याय है और इन सभी मिथ्या बातों का श्रेय पुराणों को जाता है, जो सनातन धर्म को लोगों को हास्यास्पद बनाने का अवसर ही प्रदान करता है।