
कालीघाट : काली मंदिर में दर्शन किए बिना कोलकाता की सैर अधूरी मानी जाती है
कोलाकता वाली मां काली, यहाँ दिल से मांगी गई मुराद क्षण में पुरी करती है ! कालिकायै विद्महे...
कोलाकता वाली मां काली, यहाँ दिल से मांगी गई मुराद क्षण में पुरी करती है ! कालिकायै विद्महे श्मशानवासिन्यै धीमहि तन्नो घोरा प्रचोदयात्। कोलकता का नाम पहले कालिकाता था, जो माँ काली के ही नाम पर रखा गया था! यहाँ जन-जन के दिल में और घर-घर में माँ काली विराजमान हैं! कहते हैं माँ काली की दर्शन मात्र से सब दु:ख दूर हो जाते हैं। मां से मांगी गई सभी मुरादें क्षण में पूरी हो जाती है। इसीलिए तो यहां बलि देने की परम्परा आज भी बरकरार है। मंगलवार और शनिवार को विशेष भीड़ होती है। सिद्धि प्राप्ति के लिए पंडितों और साधुओं का जमावड़ा लगा रहता है। इसीलिए कोलकाता महानगरी समेत पूरे देश में काली मां की पूजा की जाती है। जिस प्रकार शेरोंवाली मां के मंदिर में जगराता होता है, उसी प्रकार काली मां के मंदिर में प्रत्येक अमावस्या को यहाँ विशेष पूजा अर्चना होता है। इसी कारण कोलकातावासी मां काली के भक्त हैं तथा उनके शक्ति रूप को मानते हैं। काली मंदिर में दर्शन किए बिना कोलकाता की सैर अधूरी मानी जाती है। हुगली नदी के पूर्वी तट पर कालीघाट स्थित काली मंदिर सन 1855 में बनाया गया था। इस पुरानी इमारत में दुर्गादेवी तथा शिव की मूर्ति की स्थापना की गई है। कालीघाट में स्थित इस पौराणिक मंदिर में प्रवेश करने के लिए आपको उपस्थित भक्तजन की भीड़ का सामना करना पड़ेगा। पतली गली में स्थित, फूलों की दुकान, मिठाइयों तथा पूजा की सामग्री से सजी हुई दुकानों के बीच से गुज़रना पड़ता है। मां महाशक्ति के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार देवी सती ने जब अपने पिता दक्ष के यहां अपमानित होकर यज्ञ में स्वयं को भस्म कर लिया तब क्रोध में आकर यज्ञ ध्वंस के समय भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया। इस समय माता सती के शरीर के अंश कहीं-कहीं धरती पर गिरे। कहते हैं कि उनके पांव के अंश कोलकाता में जहां मां काली मंदिर बना है, वहां गिरे थे। इन अंशों ने पत्थर का रूप धारण किया था। इसी की पूजा-अर्चना की जाती है। एक और कथा भी प्रचलित है कि भागीरथी नदी के तट पर एक भक्त ने पांव के अंगूठे के आकार का पत्थर पाया था जो स्वयंभू लिंग था और नकुलेश्वर भैरव का प्रतीक था। भक्त इसे जंगल में ले गया और मां काली की पूजा करने लगा। कोलकाता स्थित प्रसिद्ध काली मां का मंदिर बहुत ही भव्य है। इस मंदिर की दीवारों पर बनाई गई टेराकोटा की चित्रकला के अवशेष यहां दिखाई देते हैं। मंदिर के पुजारी काली मां की मूर्ति को स्नान कराते हैं जिसे स्नान यात्रा के नाम से जाना जाता है। ऐसा साल में एक बार किया जाता है। इस दिन अनगिनत भक्तजन आते हैं। काली मंदिर में दुर्गा पूजा, नवरात्रि तथा दशहरा के दिन देवी की विशेष पूजा की जाती है। इस पूजा का समय अक्तूबर के महीने में तय समय के अनुसार रखा जाता है। मंदिर के पट तड़के 3.00 से लेकर प्रात: 8.00 बजे तक खुले रहते हैं तथा प्रतिदिन प्रात: 10.00 से लेकर संध्या 5.00 बजे तक भक्तजन मंदिर में पूजा-अर्चना कर सकते हैं। पूजा का समय 6.00 बजे से लेकर रात के 8.30 तक रहता है। काली माँ की पूजा श्रद्धा तथा आस्था के साथ की जाती है। अमावस्या के दिन मंदिर में काली मां के लिए महापूजन का आयोजन किया जाता है। रात्रि के 12.00 बजे शक्तिरूपी देवी की आरती की जाती है। मां को गहनों से सजाया जाता है तथा आरती के बाद मां के चरणों में भोग चढ़ाया जाता है। आभूषणों तथा लाल फूलों की माला से मां काली की प्रतिमा को सजाया जाता है।