
दिग्गज नेता कठघरे में
| | 21 April 2017 8:23 AM GMT
संपादकीयसुप्रीम कोर्ट ने लगभग ढाई दशक पुराने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भारतीय जनता पार्टी के...
संपादकीय
सुप्रीम कोर्ट ने लगभग ढाई दशक पुराने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह और उमा भारती सहित तेरह लोगों पर आपराधिक साजिश रचने सम्बंधी मुकदमा चलाने का आदेश दिया है। इस आदेश के आने के साथ ही वर्षों से चल रहे इस मामले में वे नेता, जो खुद को पाक-साफ मान कर चल रहे थे, एक बार फिर अदालत के घेरे में आ गये हैं और अब उन्हें ट्रायल का सामना करना पड़ेगा। इन नेताओं पर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत सुनवाई होगी जिनमें धर्म आदि के आधार पर अलग-अलग समूहों के बीच कथित रूप से वैमनस्य बढ़ाने, राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुंचाने वाले बयान देने, टिप्पणियां करने और लोगों को विध्वंस के लिए उकसाने आदि के आरोप शामिल हैं। फिलहाल कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल हैं इसलिए उन्हें पद पर रहने तक मुकदमे से छूट दी गयी है। कहने को यह कहा जा सकता है कि अदालत का यह आदेश काफी विलम्ब से आया है, इसे बहुत पहले आ जाना चाहिए था। बाबरी मस्जिद विध्वंस और अदालत के मौजूदा फैसले के बीच पच्चीस वर्षों के लम्बे फासले ने हमारी न्याय व्यवस्था की उन कमियों और कमजोरियों को एक बार फिर सामने ला दिया है जिन्हें दूर करने की गंभीर चर्चाएं तो होती रहती हैं लेकिन उन चर्चाओं का लाभ मिलता नहीं दिखता। बावजूद इसके इस फैसले का अपना महत्व है और इसका एक संदेश यह निकला जा सकता है कि न्याय का चक्र भले ही धीमी गति से घूमता है लेकिन वह रुकता नहीं है। अच्छी बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह महसूस किया है कि इस मामले में पहले ही बहुत विलम्ब हो चुका है और इसे जल्दी निपटाए जाने की जरूरत है। इसी के मद्देनजर उसने हर दिन सुनवाई कर के इसे दो वर्षों में निपटाने का आदेश दिया है। अदालत इन दो वर्षों की सुनवाई में यह तय करेगी कि आरोपित नेता बाबरी मस्जिद विध्वंस के साजिशकर्ताओं में शामिल थे या नहीं। हालांकि इस मामले के कई नेताओं की मृत्यु हो चुकी है, इसलिए उनके नाम सूची से स्वत: हट जाएंगे लेकिन लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती पर इस फैसले का कमोबेश राजनीतिक प्रभाव जरूर पड़ेगा। आडवाणी और जोशी के नाम क्रमश: राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी से जोड़े जा रहे थे। नये घटना विकास के साथ अब उनकी उम्मीदवारी के सवाल पर विराम लग सकता है। इसी तरह केन्द्रीय मंत्री उमा भारती और राज्यपाल कल्याण सिंह पर पद छोड़ने का नैतिक दबाव रहेगा। इस मामले से उत्पन्न नयी परिस्थितियों से भाजपा कैसे निपटेगी, यह देखने वाली बात होगी।