
जहरीले वाहन और पर्यावरण का दर्द
| | 24 April 2017 8:05 AM GMT
आशीष वशिष्ठसुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम.बी. लोकुर और दीपक गुप्ता की बेंच ने एक फैसले में कहा था कि...
आशीष वशिष्ठ
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम.बी. लोकुर और दीपक गुप्ता की बेंच ने एक फैसले में कहा था कि पूरे भारत में एक अप्रैल, 2017 से बीएस-3 तकनीक पर आधारित कोई भी वाहन न तो बेचा जाएगा और न ही उसका रजिस्ट्रेशन होगा ताकि प्रदूषण की मार झेलते समाज को कुछ राहत मिले। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह उम्मीद जगी थी कि शायद अब कुछ बदलाव आ जाए पर अगले ही दिन सारे भ्रम दूर हो गए। वाहन बनाने वाली कंपनियों ने भारतीयों की दुखती रग पर हाथ रख दिया और वह है मुफ्त का माल। सब जगह बोर्ड लग गए, लो जी लो नवरात्र में भारी छूट। अगले दिन हर बड़ा अखबार छूट की खबरों से भरा पड़ा था। फिर क्या होना था, शोरूम पर बड़ी कतारें देखने को मिलीं। ऐसा लग रहा था कि आज आधे भारत को वाहन खरीदना याद आ गया। दो दिनों के भीतर लाखों की संख्या में वाहन बिके। सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने से पहले कंपनियों के स्टाक में बीएस-3 पर आधारित वाहनों की संख्या लगभग 9 लाख थी। सोसाइटी आफ इंडियन आटोमोबाइल मैनुफैक्चरर्स के मुताबिक इन वाहनों की कुल कीमत करीब 12 हजार करोड़ रुपये है। जाहिर है भारत में कंपनियां लोगों की जान की कीमत पर भी नुकसान नहीं उठाना चाहती थी, इसलिए कंपनियों ने 31 मार्च की डेडलाइन खत्म होने से पहले इन वाहनों को ठिकाने लगाना शुरू कर दिया। इसके लिए इन कपंनियों ने ग्राहकों को भारी डिस्काउंट का लालच दिया। आखिर छूट का सवाल था और प्रदूषण, उसका क्या? जवाब एक ही था-अरे भाई थोड़ा और बढ़ जाएगा तो क्या? जिन बेचारे लोगों के लिए सरकार जागी, यह फैसला आया, वे तो खुद मरने को तैयार बैठे हैं।
बीएस-3 तकनीक पर आधारित वाहनों को वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार माना जाता है लेकिन देश भर के लोगों ने भारी डिस्काउंट के लालच में लाखों जहरीले वाहन खरीद लिए हैं यानी कंपनियों के इस अनैतिक डिस्काउंट के चक्कर में लोगों ने वो वाहन खुशी-खुशी खरीद लिए जो मानकों से ज्यादा प्रदूषण फैलाएंगे और आने वाले समय में भारत में लाखों लोगों की जान ले लेंगे। बीएस का मतलब होता है भारत स्टेज। यह इमीशन का एक मानक है। जिससे तय होता है कि कोई वाहन कितना प्रदूषण फैलाता है। अभी तक भारत में दिल्ली-एनसीआर के अलावा सिर्फ 13 शहर ऐसे हैं जहां बीएस-4 से नीचे के मानकों पर आधारित वाहन बेचना गैरकानूनी है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक अप्रैल से देश के किसी भी शहर में बीएस 3 वाहनों की बिक्री बंद हो गयी है।
भारत में इमीशन के लिए भारत स्टेज मानकों की शुरुआत वर्ष 2000 में हुई थी और तब से लेकर अब तक बीएस-1, बीएस-2, बीएस-3 और बीएस- 4 मानकों पर आधारित वाहन बाजार में आ चुके हैं। भारत स्टेज इमीशन यूरोपियन रेगुलेशंस पर आधारित है।
हमारे देश में वायु प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान डीजल वाहन ईंधन का है। यह भी कहा जाता है कि हमारे यहां बिकने वाला डीजल अंतरराष्ट्रीय मानकों से तीन सौ गुना घटिया है। ऊपर से सितम यह है कि भारत में डीजल ईंधन की खपत पेट्रोल के मुकाबले कहीं ज्यादा है क्योंकि डीजल के दाम पेट्रोल के मुकाबले काफी कम रहते हैं, इसलिए लोग डीजल वाहनों की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं। अगर हम वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाना चाहते हैं तो हमें ज्यादा वायु प्रदूषण कारक डीजल के प्रयोग को हतोत्साहित करना होगा और इसके लिए आवश्यक होगा कि डीजल के बाजार भाव को पेट्रोल के बाजार भाव से ज्यादा रखा जाए ताकि लोग पेट्रोल वाहनों की ओर आकर्षित हों जो कम वायु प्रदूषण करते हैं।
वर्तमान में अमेरिका और यूरोप के देशों में जो नए वाहन बेचे जा रहे हैं वो यूरो 6 तकनीक पर आधारित हैं यानी भारत से दो कदम आगे।
भारत में बीएस-6 से पहले बीएस-5 मानक लाए जाने की तैयारी थी लेकिन बढ़ते प्रदूषण के देखते हुए बीएस-4 के बाद भारत में सीधे बीएस-6 लाने की तैयारी है।
2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी दुनिया के सबसे प्रदूषित 1,600 शहरों की सूची में दिल्ली पहले पायदान पर था। पहले 20 शहरों में भारत के अन्य 12 शहर शामिल थे। प्रदूषण की इसी समस्या से निपटने के लिए सरकार ने जनवरी 2016 में घोषणा की थी कि भारत में बिकने वाले वाले सभी वाहनों को एक अप्रैल, 2017 तक उत्सर्जन संबंधी उच्च मानकों को पूरा करना होगा यानी यह नहीं कहा जा सकता कि आटो मोबाइल निर्माताओं को पर्याप्त समय नहीं मिला।
अब जो गाड़ियां बिक चुकी है वे करीब पंद्रह वर्षो तक देश में प्रदूषण फैलाएंगी। पैसा कमाने के लिए कंपनियों ने और डिस्काउंट के चक्कर में बीएस-3 गाड़ियां खरीदकर हमने बहुत बड़ी गलती कर दी है। अब भी समय है कि लोग प्रदूषण से मुक्ति के लिए सरकारी नीतियां लागू करने में सहयोग करें। हर बार मुद्दा उठने पर बाद में उसे भुला न दिया जाए। हमें ऐसी जीवनशैली विकसित करनी चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां स्वस्थ रह सकें। केवल प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों की बिक्री रोक देने से ही समस्या का हल नहीं होगा बल्कि देश के हर नागरिक को धरती पर हरियाली को बचाने के प्रयास करने होंगे।