
जीवन का आनंद लेना है तो योगासन कीजिये
| | 15 April 2017 8:18 AM GMT
एस.आर. बादशाहजिस प्रकार मनुष्य के जीवित रहने के लिए भोजन, नींद, नित्यकर्म एवं उपासनाएं आवश्यक हैं,...
एस.आर. बादशाह
जिस प्रकार मनुष्य के जीवित रहने के लिए भोजन, नींद, नित्यकर्म एवं उपासनाएं आवश्यक हैं, उसी प्रकार सक्रिय, प्रसन्नता भरा आनंदित जीवन जीने के लिए योग आवश्यक है।
भारतीय तत्वदर्शी ऋषि-मुनियों ने गहन साधना तथा चिंतन मनन के आधार पर अष्टांगिक योग साधना का पथ प्रशस्त किया। इसका एक अंग आसन है।
इन योगासनों का महत्त्व इस कारण से है कि उनका आधार कृत्रिम नहीं है वरन् प्राचीनकाल के मनीषियों ने उनका आविष्कार प्रकृति का निरीक्षण करके ही किया है।
योग ग्रंथों में कहा गया है कि जीव जगत में जितनी योनियां (श्रेणियां) हैं, उतनी ही संख्या आसनों की है। उन्होंने अनुभव किया कि ये जीव जन्तु बिना किसी विशेष साधन के या सामग्री के जीवन यापन करते हुये केवल प्रकृति की सहायता से सब प्रकार से स्वस्थ, सशक्त और कार्यक्षम बने रहते हैं जबकि मनुष्य प्रकृति से दूर हट जाने के कारण तरह-तरह की आधि-व्याधियों से ग्रसित रहता है। इसलिए उन्होंने विभिन्न पशु-पक्षियों के बैठने तथा शारीरिक अंगों को खींचने तथा ढीले करने के ढंग से ऐसी विधियां खोजकर निकाली जिनसे विभिन्न अंगों का व्यायाम और विश्राम का उद्देश्य पूरा हो सके और उन पर किसी प्रकार का कुप्रभाव न पड़कर उनकी क्रिया शक्ति की वृद्धि हो सके। उदाहरण के लिए मोर का पाचन संस्थान बड़ा प्रबल होता है और वह सांप तथा अन्य कठोर वस्तुओं को सहज में पचा डालता है। इस आधार पर मयूरासन की कल्पना करके मनुष्य के पाचन संस्थान, छाती और भुजाओं को विकसित करने की विधि निकाली गई। पतंजलि रचित प्राचीन ग्रंथ योग के अनुसार-स्थिरं सुखं आसनम्। आसन शरीर की वह स्थिति है जिसमें आप अपने शरीर और मन के साथ सुख से रह सकें। अत: आसनों के अभ्यास से शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सुख से रह सकते हैं। मानव जीवन के महत्तम उद्देश्यों की पूर्ति के लिए स्वास्थ्य एक अनिवार्य शर्त है।
स्वास्थ्य के प्रति जो दृष्टिकोण आज जनसाधारण के मस्तिष्क में है, वह एकांगी है। स्वास्थ्य से तात्पर्य केवल शारीरिक स्वास्थ्य नहीं है। शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक, तीनों स्वास्थ्य ही मनुष्य का जीवन सार्थक कर सकते हंै। साधारण कसरतों से जिन भीतर के अंगों का व्यायाम नहीं हो पाता, उनका आसनों द्वारा हो जाता है।
हमारे शरीर में कण्ठ कूप, स्कन्ध, पुच्छ, मेरूदण्ड, ब्रह्मरन्ध्र में 33 मर्मस्थल हैं। इनमें कोई आघात लग जाने, रोग विशेष के कारण विकृति आ जाने पर शरीर में भारीपन, उदासी, सिर में दर्द एवं ज्वर जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। डॉक्टर कुछ समझ नहीं पाते। दवा देते हैं परंतु कोई विशेष लाभ नहीं होता। सिर और धड़ में रहने वाले मर्मस्थलों में हव्य-वहा नामक घनविद्युत का निवास और हाथ-पैर में कव्य-वहा ऋणविद्युत होती है। दोनों का संतुलन बिगड़ जाने से लकवा, संधिवात आदि बीमारी तथा कमजोरी आ घेरती है। औषधियों की वहां तक पहुंच नहीं होती। शल्य क्रिया, इंजेक्शन भी उनको प्रभावित करने में समर्थ नहीं होते। इस विकट गुत्थी को सुलझाने में केवल योगासन ही तीक्ष्ण अस्त्र है। मर्मस्थलों की शुद्धि, स्थिरता तथा पुष्टि के लिए आसनों को अपने ढंग का सर्वोत्तम उपचार कहा जा सकता है।
आसनों का अभ्यास स्वास्थ्य लाभ एवं रोगों के उपचार के लिए भी किया जाता है। असाध्य रोगों में लाभ एवं रोगों का इलाज भी योग-अभ्यास के माध्यम से किया जाता है। व्यायाम की कई विधियां प्रचलित हैं। दण्ड बैठक से शारीरिक पुष्टि एवं बलवृद्धि तो होती है किंतु मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य में वृद्धि नहीं होती। पहलवान प्राय: मंदबुद्धि होते देखे गए हैं तथा दीर्घजीवी भी नहीं होते। आसन पूर्णत: वैज्ञानिक तथा पूर्ण व्यायाम है जबकि अन्य व्यायामों (दण्ड-बैठक) आदि से पेशियां कठोर हो जाती हैं। आसनों से पेशियों में लचीलापन आता है। शरीर में स्फूर्ति की अनुभूति होती है।
नलिकाविहीन ग्रंथि, रक्तसंचार, पाचन, श्वसन आदि प्रणाली पर इसका शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है। आसनों से मन शक्तिशाली बनता है। दु:ख सहन करने की शक्ति प्राप्त होती है। दृढ़ता और एकाग्रता बढ़ती है। बिना विचलित हुए मनुष्य शांत मन से संसार के दु:ख, चिंताओं वं समस्याओं का सामना कर सकता है। आसनों का अभ्यास व्यक्ति की सुप्त शक्तियों एवं आत्म विश्वास को जागृत करता है। योगासन अभ्यास, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान आदि के लिए शरीर को स्थिर बनाता है। आसनों में दक्षता प्राप्त किये बिना आध्यात्मिक शक्ति जैसे-षट्चक्रों का जागरण, कुण्डलिनी जागरण, परकाया प्रवेश आदि असंभव है। योगाभ्यास से आधुनिक, सभ्य जीवन के रोग जैसे-कब्ज, मधुमेह, गठिया, जकड़न आदि दूर हो जाते हैं।
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