
सशक्त अभिनय से सजी बेगमजान
| | 16 April 2017 8:47 AM GMT
बेगमजान निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी की बांग्ला फिल्म राजकहिनी पर आधारित फिल्म है जिसे फिल्म के कलाकारों ...
बेगमजान निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी की बांग्ला फिल्म राजकहिनी पर आधारित फिल्म है जिसे फिल्म के कलाकारों ने अपने सशक्त अभिनय से जीवन्त बना दिया है। इस फिल्म के निर्देशक भी श्रीजीत ही हैं। श्रीजीत जब राजकहिनी बनाना रहे थे तब उन्होंने अपनी इस फिल्म में लीड किरदार के लिए विद्या बालन को अप्रोच किया, लेकिन बिजी शेडयूल के चलते विद्या चाहते हुए भी इस फिल्म को नहीं कर पाई। पिछले साल महेश भट्ट ने बांग्ला की इस सुपरहिट फिल्म को हिंदी में बनाने के प्रॉजेक्ट की कमान श्रीजीत मुखर्जी को सौंपी। श्रीजीत की इस फिल्म की एक खासयित यह भी है कि फिल्म में एक दो नहीं, बल्कि दस फीमेल आर्टिस्ट हैं। यह फिल्म भारत-पाक विभाजन के उस पहलू को छूती है जो बॉलीवुड फिल्मकारों से अछूता रहा है। भारत-पाक विभाजन की पृष्ठभूमि पर मारकाट के बीच कई प्रेम कहानियां पर फिल्में बनी, लेकिन श्रीजीत की इस फिल्म का ताना-बाना बंगाल के विभाजन के ईद-गिर्द बुना गया है। फिल्म की लीड किरदार बेगम जान एक ऐसे कोठे की मालकिन हैं जो अंग्रेजों द्वारा दोनों देशों के बीच बनाई गई बंटवारे की लाइन के बीचोबीच आ रहा है। दोनों देशों के बंटवारे के काम का निपटारा करने के लिए बेगम जान के इस कोठे को तोड़ना बेहद जरूरी है। फिल्म में एक से एक मंझे हुए कलाकारों की पूरी फौज है तो भट्ट कैंप ने इस फिल्म में भी बॉक्स ऑफिस पर बिकाऊ मसालों को फिट करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। अब यह बात अलग है कि सेंसर की प्रिव्यू कमेटी ने फिल्म के कई डबल मीनिंग संवादों और कई लंबे लव मेकिंग सीन पर कैंची चला दी, वहीं सब्जेक्ट की डिमांड के चलते सेंसर ने कई बेहद हॉट सीन और हॉट संवादों को फिल्म से अलग नहीं किया। यह फिल्म उस वक्त एक बार फिर सुर्खियों में आई जब पाकिस्तानी सेंसर बोर्ड ने भारत-पाक विभाजन के बैकग्राउंड पर बनी इस फिल्म को पाकिस्तान में बैन करने का फैसला किया। बेगम जान (विद्या बालन) एक ऐसे कोठे की मालकिन हैं, जो ऐसी जगह पर बना हुआ है जिसे बंटवारे के बाद भारत-पाक के बीच बंटवारे की लाइन खींचने और इस बॉर्डर पर सीमा चौंकी बनाने के लिए प्रशासन को अपने कब्जे में लेना बेहद जरूरी है। बेगम जान की इस कोठे में एक अधेड़ उम्र की महिला (ईला अरुण) भी रहती है, जिसे इस कोठे पर धंधा करने वाली सभी लड़कियां दादी मां कहती हैं। करीब दस से ज्यादा लड़कियों के इस कोठे की मालकिन बेगम जान पर यहां के राजा जी (नसीरुद्दीन शाह) पूरी तरह से मेहरबान हैं। सो किसी में हिम्मत नहीं जो बेगम जान के इस कोठे की ओर बुरी नजर डाल सके। यहां का कोतवाल (राजेश शर्मा) और इलाके का मुखिया भी अक्सर देर रात को मस्ती के लिए इसी कोठे पर आते हैं। बेगम को किसी की जरा भी परवाह नहीं, कोठे पर रहने वालीं लड़कियों की दुनिया इस कोठे तक ही सीमित है। इस कोठे के सभी कायदे-कानून खुद बेगम जान ही बनाती है और इन कायदे-कानूनों पर कोठे को चलाती भी है। बेगम का एक चेहरा बेशक जालिम है जो यहां रहने वाली लड़कियों से मारपीट करके धंधा कराती है तो वहीं दूसरा चेहरा ऐसा भी है जो इन लड़कियों के दुख के वक्त में हमेशा उनके साथ है। इस कोठे की दुनिया उस वक्त बदलती है जब भारत-पाक को विभाजित करने के लिए सरकारी अफसर दोनों देशों के बीच बंटवारे की लाइन खींचने का काम शुरू करते हैं। बेगम को इस बंटवारे या देश को मिल रही आजादी से कुछ लेना-देना नहीं, उसे तो बस अपने धंधे को और ज्यादा चमकाने और अपने इस कोठे को बचाने के अलावा और कुछ दिखाई नहीं देता। बेगम और यहां रहने वाली सभी लड़कियां किसी भी हालात में अपनी इस कोठी (जिसे हर कोई कोठा कहता है) खाली करने को राजी नहीं, बेगम की आाखिरी उम्मीदें राजाजी पर टिकी हैं जिन्होंने उससे दिल्ली जाकर उसके इस कोठे को बचाने का वादा किया है। दूसरी ओर, इस कोठे के आस-पास बंटवारे की कांटेदार तार लगने का काम शुरू हो चुका है। दो सरकारी ऑफिसर इलियास (रजत कपूर), श्रीवास्तव जी (आशीष विद्यार्थी) यहां के पुलिस कोतवाल और सिपाहियों की टुकड़ी के साथ यह काम कर रहे हैं, लेकिन बेगम जान के कोठे को तोड़कर यहां तार लगाने काम शुरू नहीं हो पा रहा है। बेगम जान की मुश्किलें उस वक्त बढ़ जाती है जब दिल्ली से लौटकर राजाजी उसे कोठा खाली करने की सलाह देते हैं, लेकिन बेगम और यहां रहने वाली लड़कियां इस कोठे को खाली करने के लिए तैयार नहीं। सो दोनों सरकारी ऑफिसर कोठा खाली कराने की डील इलाके के एक शातिर बदमाश कबीर (चंकी पांडे) को सौंपते है, जिसे अब किसी भी कीमत पर बेगम जान के कोठे को खाली कराना है।
फिल्म में मंझे हुए कलाकारों की पूरी फौज है। इन सबके बावजूद फिल्म के लीड बेगम जान के किरदार में विद्या बालन का जवाब नहीं। 'द डर्टी पिक्चर', 'कहानी' जैसी कई हिट फिल्में करने के बाद विद्या ने इस किरदार को जिस बेबाकी और बिंदास अंदाज के साथ कैमरे के सामने जीवंत कर दिखाया है उसका जवाब नहीं। विद्या बालन की इस जानदार परफॉर्मेंस को देखने के बाद उन आलोचकों को भी जवाब मिलेगा जो विद्या की पिछली दो-तीन फिल्मों को मिली नाकामयाबी के बाद विद्या के करियर पर सवाल उठा रहे थे। विद्या के अलावा फिल्म के लगभग सभी कलाकारों ने पूरी ईमानदारी के साथ अपने किरदार को निभाया है। राजाजी के छोटे से किरदार में नसीरुद्दीन शाह अपनी पहचान छोड़ जाते हैं तो लंबे अर्से बाद स्क्रीन पर नजर आए विवेक मुशरान एक अलग लुक में नजर आए। गौहर खान, पल्लवी शारदा, ईला अरुण, रविजा चौहान, मिष्ठी सहित फिल्म के हर आर्टिस्ट ने अपने किरदार को पूरी मेहनत के साथ निभाया। श्रीजीत ने पूरी ईमानदारी के साथ विषय पर काम किया, उनकी तारीफ करनी होगी कि 'बेगम जान' के ईद-गिर्द घूमती इस कहानी में उन्होंने कहानी के हर किरदार को अपनी पहचान बनाने के लिए दमदार प्लैटफॉर्म दिया।विद्या बालन ने एक बार फिर लाजबाब काम किया है। फिल्म का संवाद जानदार है, फिल्म का हर संवाद दिल को छू जाता है, तवायफ के लिए क्या आजादी, लाइट बंद होने के बाद सब एक बराबर। ऐसे कई संवाद हैं जो हॉल में बैठे दर्शकों को कुछ सोचने के लिए मजबूर करते हैं, वहीं फिल्म की कहानी में कई झोलझाल भी हैं, इंटरवल से पहले की फिल्म की रफ्तार कुछ सुस्त है, फिल्मकार अगर चाहते तो फिल्म के कई बेहद बोल्ड सीन से बचा जा सकता था। फिल्म का संगीत कहानी और माहौल के मुताबिक है, जो बेशक म्यूजिक लवर्स और जेन एक्स की कसौटी पर खरा न उतर पाए, लेकिन क्लासिकल म्यूजिक के शौकीनों की कसौटी पर जरूर खरा उतर सकता है।