
सस्ती दवा और पीएम का संकल्प
| | 19 April 2017 8:14 AM GMT
संपादकीयप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को सूरत में देश के लोगों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने...
संपादकीय
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को सूरत में देश के लोगों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने का संकल्प व्यक्त कर के यह बताने की कोशिश की है कि वह जिस नये भारत के निर्माण की बात कर रहें हैं, उसमें आम लोगों के स्वास्थ्य की चिंता उनकी मुख्य प्राथमिकता सूची में शामिल है। भारत में महंगी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं निम्न और मध्यवर्गीय समाज को सबसे अधिक परेशान करती हैं। हालत तो यह है कि देश की 65 फीसदी आबादी आर्थिक कारणों से आवश्यक दवाएं नहीं खरीद पाती हैं और ईलाज के सस्ते विकल्प की ओर रुख कर आपनी जान जोखिम में डालती रहती है। प्रधानमंत्री ने आम लोगों की इस त्रासदी को समझा है और सर्वजन सुलभ चिकित्सा व्यवस्था की परिकल्पना की है। इसके लिए उन्होंने जल्द ही एक ऐसा कानूनी ढांचा तैयार करने की बात कही है जिसके अंतर्गत चिकित्सा व्यापार को लाकर उन पर शिकंजा कसा जाएगा। साथ ही इस कानून के माध्यम से चिकित्सकों को महंगी ब्रांडेड दवाइयों के स्थान पर उसी गुणवत्ता वाली सस्ती जेनरिक दवाइयां लिखने के लिए प्रेरित किया जाएगा। मौजूदा समय में आमतौर पर चिकित्सक अपनी पर्ची में जेनरिक दवाओं को लिखने से परहेज करते हैं और ब्रांडेड दवाइयां ही लिखते हैं। इसके लिए वे दवा कम्पनियों से उपकृत भी होते रहते हैं। सस्ती जेनेरिक दवाओं के प्रति चिकित्सकों की बेरुखी के साथ-साथ इनका प्रचार-प्रसार नहीं के बराबर होने के कारण भी लोग सस्ती दवाओं का उपयोग करने से कतराते हैं। यह अच्छी बात है कि सरकार ने सस्ती दवाओं के प्रति दिलचस्पी दिखलायी है और जन औषधि केन्द्रों के माध्यम से इन्हें अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रही है। लेकिन सरकार के इस अभियान की सफलता में सबसे बड़े बाधक चिकित्सक बने हुए हैं जो मरीजों को जेनरिक दवा लिखते ही नहीं। साथ ही जन औषधि केन्द्रों की बेहतर मार्केटिंग में शिथिलता के कारण भी ये दवाएं लोकप्रिय नहीं हो पा रही हैं। अगर चिकित्सक मरीजों को सिर्फ सस्ती दवाएं ही लिखने लगे तो एक अनुमान के अनुसार देश के चिकित्सा खर्च में कम से कम सत्तर प्रतिशत की कमी आ जाएगी।लोगों को यह बताने की जरूरत है कि सस्ती जेनेरिक दवाओं का इस्तेमाल, असर और साइड इफेक्ट्स सब कुछ ब्रांडेड दवाओं जैसा ही होता है। इनका कंपोजिशन भी वही होता है। ये बहुत सस्ती इस लिए होती हैं क्योंकि इनके निर्माण और मार्केटिंग पर बड़ी कंपनियों और बड़े ब्रांड की तरह बेहिसाब पैसे खर्च नहीं किए जाते। रोगों पर इनका असर उसी तरह होता है, जैसा नामी कंपनियों एवं ब्रांडेड दवाओं का, परंतु गलत धारणा बना दी गयी है कि महंगी दवाओं का प्रभाव जेनेरिक दवाओं के मुकाबले अधिक होता है। वस्तुत: इस धारणा को तोड़ने के सक्षम उपाय कर के ही प्रधनमंत्री जेनरिक दवाओं को ब्रांडेड दवाओं के समानान्तर खड़ा कर पाएंगे और उनका उद्देश्य पूरा हो पाएगा।