लखनऊ, 19 नवंबर आज से नौ लाख वर्ष पहले श्रीराम, लक्ष्मण और
सीता का वनगमन हुआ। जिसमें वह अयोध्या से चलकर मध्यप्रदेश, राजस्थान होते
हुए दक्षिण भारत के जिन रास्तों से होते हुए आगे बढ़े। उसकी चर्चा करेंगे।
इसके बाद तमिलनाडु के धनुष्कोण्डी से समुद्र पारकर श्रीलंका गए।
अयोध्या
से करीब 25 किलोमीटर दूर बरसाती नदी जैसा तमसा नदी बहती है। लाखों साल
पहले यह नदी इतनी बड़ी रही होगी जिसे पार करने में श्रीराम, सीता और
लक्ष्मण को नाव का सहारा लेना पड़ा था। इसी नदी के किनारे ऋषि च्यवन का
आश्रम भी मौजूद है। जो अयोध्या-लखनऊ हाईवे से दो किलोमीटर अंदर है। यहां पर
आजकल एक प्राचीन शिवमंदिर आपको आज भी मिल जाएगा। तमसा के आगे श्रृंगवेरपुर
गंगा जी के किनारे स्थित है जो कि प्रयाग से करीब 20-22 किलोमीटर दूरी पर
है। यहीं पर निषादराज की कथा का वर्णन श्रीराम चरित मानस में किया गया है।
श्रृंगवेरपुर
से आगे कुरई गांव है, जहां श्रीराम ने अपने अनुज और पत्नी के साथ रात्री
विश्राम किया था। इसके बाद श्रीराम, लक्ष्मण और सीता प्रयागराज में महर्षि
भारद्वाज के आश्रम पहुंचे थे। श्रीराम चरित मानस के अनुसार भगवान श्रीराम
ने महर्षि भारद्वाज से मार्गदर्शन प्राप्त किया और प्रयाग से आगे बढ़ते हुए
चित्रकूट पहुंचे।
बुंदेलखंड के बाद शुरू हुआ वनवास
बुंदेलखंड
मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों को मिलाकर बनता है। जिसमें
चित्रकूट भी आता है। चित्रकूट से आगे सतना होते हुए भगवान श्रीराम अत्रि
ऋषि के आश्रम पहुंचते हैं। हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के
तपोवन में रहा करते थे, लेकिन सतना में रामवन नामक स्थान पर भी श्रीराम
रुके थे। इसके बाद दंडकारण्य में प्रवेश करते हैं। अयोध्या निवासी रामकथा
मर्मज्ञ आचार्य राजेश ठाकुर बताते हैं कि ‘चित्रकूट से निकलकर श्रीराम घने
वन में पहुंचे थे। आज भी यह इलाका वनों से आच्छादित हैं। असल में यहीं से
शुरु हुआ था श्रीराम का वनवास।’
दंडकारण्य इन स्थानों को कहा जाता था
मध्यप्रदेश,
छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर दंडकाराण्य कहा जाता
था। यह स्थान अत्यंत सघन वन हुआ करता था और आज भी यहां पर हरित क्षेत्र
सर्वाधिक पाया जाता है। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्रप्रदेश
राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल हैं। उड़ीसा की महानदी के इस पार से
गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था। इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा
है आंध्रप्रदेश का शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-
रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा
जाता है, कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर
ही बिताए थे। दंडकारण्य क्षेत्र के आकाश में ही सीता-हरण के बाद रावण और
जटायु का युद्ध हुआ था। ऐसा माना जाता है कि दुनिया भर में सिर्फ यहीं पर
जटायु का एकमात्र मंदिर है।
नासिक में कटी थी शूर्पणखा की नाक
दण्डकारण्य
में कुछ दिन रहने के बाद भगवान श्रीराम आगे की यात्रा करते हैं। वह दक्षिण
भारत के प्रमुख संत अगस्त्य मुनि के आश्रम पहुंचते हैं। अगस्त मुनि का
आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में है, जो गोदावरी नदी के किनारे बसा है।
यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। इसलिए आज भी इस स्थान को
नासिक कहा जाता है। यहीं पर श्रीराम और लक्ष्मण ने खर-दूषण के साथ युद्ध
किया था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। महाराष्ट्र
के नासिक में ही शूर्पणखा की नाक कटने और मारीच समेत खर व दूषण का वध हो
जाने के बाद रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया था। जिसकी
स्मृति नासिक से करीब 56 किमी दूर ताकेड गांव में सर्वतीर्थ नामक स्थान पर
आज भी संरक्षित है। जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो
नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। यही वह स्थान है
जहां लक्ष्मण ने रेखा खींच दी थी।
इसके आगे आंध्रप्रदेश के
खम्मम जिला भी भगवान राम की कथा से जुड़ा हुआ स्थान है। खम्मम जिले में ही
भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग एक घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला
को पनशाला या पनसाला आदि नामों से भी जानते हैं। यह भी गोदावरी नदी के तट
पर स्थित है। कुछ विद्वान मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान
उतारा था। इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था, यानी
सीताजी ने धरती को यहां ही छोड़ा था। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर
आज भी मौजूद है।
विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी आशुतोष
श्रीवास्तव बताते हैं कि ‘भगवान श्रीराम से जुड़े स्थलों पर काफी अध्ययन
किया गया है, जिसके आधार पर उनके वन गमन मार्ग को निश्चित कर लिया गया है।
वह कहते हैं कि सर्वतीर्थ और पर्णशाला के बाद राम और लक्ष्मण, माता सीता की
खोज में तुंगभद्रा और कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा
और कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में भटकते रहे।’
केरल में स्थित है माता शबरी का स्थान, उनका नाम श्रमणा था
भगवान
श्रीराम जटायु के अंतिम संस्कार कर लेने के बाद ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे
और रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में
स्थित है। शबरी जाति से एक भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा। प्राचीन काल
में तुंगभद्रा कहे जानी वाली पम्पा नदी यहीं पर है। जिसके किनारे हम्पी बसा
हुआ है। रामायण में हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के
तौर पर किया गया है। केरल का प्रसिद्ध सबरीमलय या सबरीमाला मंदिर तीर्थ भी
इसी नदी के तट पर स्थित है।
ऋष्यमूक पर्वत पर हुई हनुमान से भेंट
ऋष्यमूक
पर्वत पर ही हनुमान से श्रीराम की भेंट हुई है। यह मलय पर्वत से आगे चंदन
के वनों को पार करने पर पड़ता है। हनुमान और सुग्रीव से भेंट होने के बाद
उन्होंने सीता माता के आभूषणों को देखा, यहीं पर बालि का वध हुआ। ऋष्यमूक
पर्वत और किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। पास
की पहाड़ी को मतंग पर्वत माना जाता है। यहीं पर मतंग ऋषि का आश्रम था, जो
हनुमानजी के गुरु भी थे।
आगे तमिलनाडु की लंबी तटरेखा जो
लगभग 1,000 किमी तक विस्तारित है। कोडीकरई नाम के समुद्र तट पर जो कि
वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण
में पाल्क स्ट्रेट से घिरा हुआ है। यहीं पर श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला
और सेना को कोडीकरई में एकत्रित कर विचार विमर्श किया। सेना ने उस स्थान के
सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह
स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम
की ओर कूच किया।
रामेश्वर का समुद्र शांत माना जाता है
रामेश्वरम
को शांत समुद्र तट माना जाता है और यहां पर पानी भी कम गहरा है। वहां
पहुंचने के बाद भगवान श्रीराम ने महादेव शिव की पूजा अर्चना किया। वाल्मीकि
रामायण के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे
धनुष्कोंडी की खोज हुई जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता है।
नुवारा एलिया पर्वत श्रृंखला समेत भारत और श्रीलंका के अनेक स्थानों की
कार्बन डेटिंग के बाद यह निश्चित माना जाता है कि भारत और श्रीलंका में
मौजूद अनेक स्थल रामायणकालीन प्राचीन हैं।
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कार्बन डेटिंग बताती है कि भारत-श्रीलंका के अनेक स्थान हैं रामायणकालीन
