महाकुंभनगर
(प्रयागराज) । विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने हिन्दुओं
की घटती जन्मदर पर चिंता जाहिर की है। विहिप का मानना है कि यदि यही
स्थिति आगे भी बनी रही तो भारत में जनसंख्या असंतुलन का खतरा पैदा हो
जाएगा। इसलिए विहिप ने प्रत्येक हिन्दू दम्पत्ति से कम से कम तीन संतान
पैदा करने का आह्वान किया है। महाकुंभ में विहिप के राष्ट्रीय महामंत्री
बजरंगलाल बांगड़ा से 'हिन्दुस्थान समाचार' के वरिष्ठ संवाददाता बृजनन्दन
राजू ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश।
प्रश्न: महाकुंभ से सनातन बोर्ड की मांग उठ रही है। धर्म संसद भी आयोजित हुई है। विहिप का क्या मत है?
उत्तर:
पिछले 50 वर्षों से हिन्दू समाज के सामने उत्पन्न किसी ज्वलंत समस्या पर
चर्चा के लिए संतों के मार्गदर्शन में विहिप धर्म संसद करती रही है। राम
मंंदिर आन्दोलन को शुरू करने का निर्णय भी धर्म संसद में ही हुआ था। अभी जो
महाकुंभ में धर्म संसद हुई है कुछ संत मिलकर एक बहुत ही छोटी टोली को साथ
बैठाकर उसको धर्म संसद का रूप दे रहे हैं। धर्म संसद का जो विराट स्वरूप
होता है वह इसमें देखने को नहीं मिला। अभी एक दो साल के अंदर जो धर्म संसद
हुई है विहिप का उनसे कोई संबंध नहीं है। विहिप ने ऐसी किसी भी धर्म संसद
में भाग नहीं लिया।
सनातन बोर्ड की चर्चा हमने दो-तीन महीनों से
समाचार पत्रों में पढ़ी है। किसी ने भी आकर सनातन बोर्ड के विषय में कोई
स्पष्टता देने का प्रयास नहीं किया। चूंकि हिन्दू समाज बहुत विराट है। कुछ
लोंगों ने मंदिरों से जुड़ी समस्याओं का समाधान सनातन बोर्ड में खोजा है।
फिर भी इसके बारे में बहुत ज्यादा स्पष्टता नहीं है। इसके अधिकार क्या
होंगे, क्या कार्यक्षेत्र होगा, कैसे यह काम करेगा। किसी प्रकार की
स्पष्टता नहीं होने के कारण विहिप न तो उस पर चर्चा कर सकती न तो विचार
व्यक्त कर सकती है। प्रस्ताव मिलेगा तो हमारी टोली में चर्चा होगी। तो हम
विचार बनाएगे।
प्रश्न:विहिप की स्थापना के बाद लगातार कुंभ के अवसर
पर विश्व हिन्दू सम्मेलन या फिर धर्म संसद का आयोजन होता रहा है। इस बार
विहिप की ओर से न तो धर्म संसद की गई और न ही विश्व हिन्दू सम्मेलन, ऐसा
क्यों?
उत्तर:हम नहीं चाहते कि धर्म संसद या विश्व हिन्दू सम्मेलन
के नाम से हिन्दू समाज में भ्रम उत्पन्न हो। एक ही महाकुंभ में अलग-अलग
धर्म संसद चल रही हो। हम हिन्दू समाज में एकता व संगठन चाहते हैं। समाज में
भ्रम का निर्माण न हो इसलिए विहिप की ओर से धर्म संसद आयोजित नहीं की गयी।
केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल की बैठक कुंभ में होती हैं। वह सम्पन्न हो
चुकी है। केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल में शामिल सभी संतों ने उसमें भाग
लिया। विहिप की ओर से महाकुंभ में संत सम्मेलन,युवा संत सम्मेलन व साध्वी
सम्मेलन संपन्न हुआ है। संत सम्मेलन में बड़ी संख्या में साधु-संत आए।
हिन्दू समाज की जो स्थिति चुनौतियां हैं। उनपर चर्चा हुई और उनके समाधन के
मार्ग पर संतों से मार्गदर्शन मिला है।
प्रश्न:विश्व हिन्दू परिषद वक्फ बोर्ड समाप्त करना चाहती है या फिर वक्फ अधिनियम में संशोधन चाहती है?
उत्तर:बड़ी
संख्या में मुसलमान भी धार्मिक भावना से प्रेरित होकर समाज कल्याण के लिए
अपनी संपत्ति दान देता है। इसलिए उसकी उचित देखभाल की व्यवस्था तो करनी ही
पड़ेगी उसका नाम कुछ भी हो। मुसलमानों द्वारा अपने धार्मिक उद्देश्यों की
पूर्ति के लिए अलग संपत्ति दान की जा सकती है तो उसका रक्षण सार्वजनिक रूप
से उस समाज के द्वारा किया जाना चाहिए। लेकिन जो वक्फ बोर्ड को असीमित
अधिकार प्रदान किए गए हैं वह हमें स्वीकार्य नहीं हैं। इसलिए इस अधिनियम
में संशोधन करके उचित व्यवस्था बनानी चाहिए। सारे काम न्यायपालिका के
संरक्षण में होना चाहिए। विहिप ने संयुक्त संसदीय समिति के सामने अपनी बात
रखी है। वक्फ बोर्ड के निरंकुश व असीमित अधिकारों को नियंत्रित करने के लिए
केन्द्र सरकार के कानून सुधार अधिनियम का हम समर्थन करते हैं।
प्रश्न: केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल की बैठक में किन विषयों पर चर्चा हुई है?
उत्तर:देश
भर में हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति, हिंदुओं की घटती जन्म
दर से देश में हिंदू जनसंख्या का असंतुलन, हर हिंदू परिवार में कम से कम
तीन बच्चों का जन्म हो ऐसा आह्वान विहिप की केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल की
बैठक में पूज्य संतों ने किया है।हिन्दू समाज के घटते जन्मदर का प्रमुख
कारण हिन्दू जनसंख्या में हो रहा असन्तुलन है। हिन्दू समाज के अस्तित्व की
रक्षा के लिए हर हिन्दू परिवार में कम से कम तीन बच्चों का जन्म होना
चाहिए। हिन्दू समाज की जनसंख्या के दो पहलू हैं। एक पहलू यह है कि
जनसंख्या की वृद्धि दर जो जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए आवश्यक होती है
2.1 प्रतिशत उससे नीचे आ गई। इसलिए भारत की जनसंख्या गिरे नहीं कम से कम
2.1 प्रतिशत दर को प्राप्त करना जरूरी है। हिन्दुओं की जन्मदर घट रही है
लेकिन मुस्लिमों की जन्मदर लगातार बढ़ रही है। इससे जो सामाजिक असंतुलन
बनता है इसकी वजह से देश में राजनैतिक अस्थिरिता का वातावरण पैदा होता है।
हिन्दू समाज के जन्मदर को बढ़ाने की आवश्यकता है।
प्रश्न: हिन्दू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग लम्बे समय से चल रही है। क्या प्रगति है?
उत्तर:हिन्दू
मंदिरों की मुक्ति के लिए तो पिछले आठ नौ वर्षों से विहिप काम कर रही है।
हमने इस विषय पर गहन चिंतन किया है। चार साल से एक समिति इस विषय पर काम कर
रही है। बड़े संतों की बैठक हुई है। विभिन्न मत पंथ समप्रदाय के
धर्माचार्य,कानूनी विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता ओर सुप्रीम कोट और हाई
कोर्ट के न्यायाधीश ने विभिन्न वर्गों की समिति ने अनेक बैठकें कर एक
प्रारूप तैयार किया है। अगर जब मंदिर सरकार के नियंत्रण से हटेंगे तो किसे
दिए जाएंगे। इस समिति ने एक प्रारूप तैयार किया है। उस प्रारूप को हमने
विभिन्न राज्य सरकारों को दिया है। सरकारें चिंतन कर रही हैं और इस विषय को
हम आगे लेकर जाएंगे।
प्रश्न: मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति के अभियान का स्वरूप क्या रहेगा?
उत्तर:विहिप
की पिछले 15 वर्षों में मांग रही है कि मंदिरों के प्रबंधन व नियंत्रण से
सरकारों को हट जाना चाहिए। यह समस्या दक्षिण भारत के राज्यों में ज्यादा
है। उत्तर भारत के राज्यों में अपेक्षाकृत कम है। अभी आन्ध्र प्रदेश की
राजधानी विजयवाड़ा में ढ़ाई से तीन लाख हिन्दुओं की उपस्थिति में विराट
सम्मेलन के माध्यम से इस अभियान का शंखनाद हो चूका है। हमने सरकार से
मांग की है कि सरकार के अधीन जो मंदिर हैं वह हिन्दू समाज को सौंप दे। वहां
के मुख्यमंत्री से मिलकर इसका ड्राफ्ट सौंपा है। अन्य राज्य सरकारों को हम
सौंप रहें है। राज्य सरकारें पहल करेंगी तो अपने-अपने राज्यों के मंदिर
हिन्दू समाज को सौंप दें। दक्षिण में जनआन्दोलन की तैयारी हम कर रहे हैं।
पहला चरण पूरा हुआ। आगे कर्नाटक, तेलांगाना, तमिनाडु व केरल में भी विशाल
जनसभाओं के माध्यम से हम समाज का प्रबोधन करेंगे सरकारों को संदेश देंगे।
प्रश्न:विहिप इस बार अलग से बौद्ध सम्मेलन क्यों कर रही है?
उत्तर:इस
बार बौद्ध सम्मेलन जो हो रहा है हम उसका स्वागत करते हैं। यह सम्मेलन
हिन्दू व बौद्ध दोनों समुदायों को नजदीक लाने में यह सम्मेलन सहायक सिद्ध
होगा। चूंकि बौद्ध धर्म भी भारतीय समाज का मूल धर्म है। इसका मूल भारत में
ही है। गया सारनाथ कुशीनगर श्रावस्ती यह सब बुद्ध की आस्था के बड़े केन्द्र
हैं जहां तथागत बुद्ध यहां रहे। भारत में विकसित एक सम्प्रदाय हैं इसलिए
हम चाहते हैं कि विश्व में जहां तक भी यह फैला है उस सम्प्रदाय का अपने
भारत की मूल जड़ों से उसका संबंध उसी प्रकार से बना रहे। जैसा वृक्ष का जड़
से होता है। साथ मे पूरे विश्व में करूणा और मैत्री का संदेश तथागत ने
दिया वह संदेश विश्व में फैले।
प्रश्न: महाकुंभ से सम्पूर्ण हिन्दुओं को आप क्या संदेश देंगे?
उत्तर:
कुंभ का अथ है परस्पर मिलन। महाकुंभ है तो अधिक संख्या में मिलना। समस्त
मत पंथ सम्प्रदाय शाखाएं जितनी भी हमारी हैं उन सबके आध्यात्मिक पुरुष
विद्धान यहां इकट्ठा हुए हैं। बड़ी मात्रा में हिन्दू मतावलम्बी तीर्थ
यात्री यहां आए हैं। संगम जैसे पवित्र क्षेत्र में डुबकी लगाकर पवित्र हो
जाने की जो आस्था व श्रद्धा है उसका भौतिकस्वरूप स्वयं महाकुंभ में देखने
को मिलता है। शताब्दियों से चली आ रही आस्था का जो विषय है जो उत्साह
महाकुंभ में देखने को मिल रहा है उससे पता चलता है कि हिन्दू समाज में
अपनी परम्पराओं के प्रति गौरव का भाव है, उसे पालन करने की वृत्ति है और
हिन्दू परम्पराओं के प्रति लगाव कम नहीं हुआ है। बड़ी संख्या में कुंभ में
श्रद्धालुओं का आना अपने आप में यह प्रमाण है कि हिन्दू धर्म के प्रति उनकी
श्रद्धा व आस्था अडिग है। पिछले 40-50 वर्षों में हिन्दू कहने में गौरव का
बोध नहीं होता था वह कालखण्ड बीत गया। अब बड़े गर्व से सब कहते हैं दिखते
हैं दिखाते हैं और आचरण भी करते हैं। कुंभ से यह संदेश है कि हम अपने
धार्मिक परम्पराओं पर गौरव करें। हमारी जो आस्था व श्रद्धा के मानबिन्दु
हैं उनकी रक्षा भी करें। उन्नयन भी करें। इससे भारत का और हिन्दू समाज का
भविष्य सुरक्षित रहेगा।