पूर्वी
चंपारण। बिहार में पूर्वी चंपारण जिले के पहाड़पुर स्थित
परसौनी कृषि विज्ञान केंद्र की पहल पर किसानो ने जलवायु अनुकूल कृषि
कार्यक्रम के तहत गेहूं की उन्नत प्रभेद DBW-252, DBW-107 और राजेंद्र
गेहूं-3 की खेती शुरू कर दी है।
इसकी जानकारी देते केन्द्र के मृदा
विशेषज्ञ डा आशीष राय ने बताया कि उक्त प्रभेद की बुआई सीड कम फर्टिलाइजर
ड्रिल मशीन विधि से किया जा रहा है।इस विधि से गेहूं की बुआई करने से
किसानो को न केवल समय व धन की बचत होगी,साथ ही बेहतर उत्पादन भी मिलेगा।
उन्होंने
बताया कि बिहार में धान-गेहूं की खेती का क्षेत्रफल अन्य फसलों की तुलना
में अधिक है। आम तौर पर किसान गेहूं की बुआई छिटवा विधि से करते है, जिसमें
लागत के साथ समय भी अधिक लगता है,साथ ही खेतों की अधिक जुताई के कारण
गेहूं के लिए खेतों में पर्याप्त नमी नहीं मिल पाती है।
केविके
परसौनी के मृदा विशेषज्ञ डा. आशीष और मृदा अभियांत्रिकी विशेषज्ञ डा अंशू
गंगवार ने किसानों को जलवायु अनुकूल खेती के तहत गेहूं की बुवाई मशीन से
करने की सलाह दी है।इनके सलाह पर किसान अच्छी नमी वाले खेतों में भी मशीन
के माध्यम से गेहूं की सीधी बुआई कर रहे हैं।
मृदा विशेषज्ञ डा
आशीष ने बताया कि मशीन द्वारा सामान्य बुआई के माध्यम से दो-तीन सप्ताह
पूर्व भी गेहूं की बुवाई की जा सकती है। वहीं मृदा अभियांत्रिक विशेषज्ञ डा
गंगवार ने बताया कि परंपरागत विधि की तुलना में इस विधि से खेती करने पर
किसान प्रति हेक्टेयर आठ से 10 हजार तक जुताई पर होने वाले खर्च की बचत
करने के साथ ही बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। बताया कि 15-20 दिन
पहले फसल की बुआई होने पर किसान 10 से 15 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त कर सकते
है।
मशीन विधि से गेहूं की बुआई करने पर 15 से 20 प्रतिशत
पानी की भी बचत किसान कर सकेंगे। इस विधि से बुआई करने पर 20-25 % बीज और
25-30% खाद की बचत हो सकती है। साथ ही साथ धान की पुआल का भी खेत में ही
मल्च की तरह उपयोग हो सकता है जो धीरे धीरे सड़कर खाद बन जाता है और जिससे
मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ने से मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि
होती है। किसानों के बीच में केंद्र के अजय झा, रूपेश कुमार, चुन्नू कुमार
और संतोष कुमार इन तकनीकियों को पहुंचाने में उत्साह के साथ लगे हुए हैं
जिससे किसान समय पर तकनीकी का लाभ ले रहे हैं।
इस विधि से
बुआई करने पर लाइन से पौधे समान दूरी पर बढ़ते हैं जिससे सभी पौधो को बराबर
मात्रा में खाद, सिंचाई का पानी, धूप के साथ हवा भी समान रूप से मिलता
है,इससे पौधे का विकास और उपज में वृद्धि होती है।