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हलषष्ठी पूजन 24 अगस्त को, संतान की लंबी उम्र के लिए महिलाएं रखेंगी व्रत


रायपुर। संतान की लंबी उम्र के लिए 24 अगस्त शनिवार को माताएं हलषष्ठी पूजन ( कमरछट) का व्रत रखेंगी। माताएं संतान की लंबी आयु के साथ परिवार के सुखमय जीवन के लिए व्रत रखेंगी। वहीं पूजा करने के स्थान पर सगरी खोदकर पूजन करेंगी। कमरछठ की तैयारी को लेकर राजधानी रायपुर के गाेलबाजार बाजार में खासी भीड़ आज से ही देखी जा रही है। छह तरह की भाजियां, पसहर चावल, काशी के फूल, महुआ के पत्ते, धान की लाई सहित पूजा की कई छोटी-बड़ी पूजन की सामाग्री भगवान शिव को अर्पित कर संतान के दीर्घायु जीवन की कामना की जाएगी। सुबह से निर्जला व्रत कर महिलाओं ने दोपहर को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर कमरछठ की कहानी सुनेगी।

छत्तीसगढ़ का प्रमुख त्योहार कमरछठ

कमरछठ व्रत छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इसे हलछठ या हलषष्ठी भी कहा जाता है। इस व्रत को करने वाली माताएं निर्जला रहकर शिव-पार्वती की पूजा करती है। सगरी बनाकर सारी रस्में भी निभाई गई और कमरछठ की कहानी सुनकर शाम को डूबते सूर्य को अध्र्य देने के बाद अपना व्रत खोलेंगी। इस व्रत को यूपी-बिहार के पावन छठ व्रत की तरह ही माना जाता है जो संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है।

शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, षष्ठी तिथि 24 अगस्त को सुबह 7:51 बजे शुरू होगी और 25 अगस्त को सुबह 5:30 बजे समाप्त होगी। इस वर्ष षष्ठी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगी। इसलिए हलषष्ठी व्रत शनिवार को ही करना उचित रहेगा। शहर के प्रसिद्ध सिद्धपीठ, मां महामाया देवी मंदिर पुरानी बस्ती में हलषष्ठी व्रत का पूजन 24 अगस्त को दोपहर 1 बजे मंदिर के मुख्य पुजारी द्वारा किया जाएगा।

हलषष्ठी व्रत की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक ग्वालिन गर्भवती थी और अपने दूध-दही को बेचने के लिए निकल पड़ी। प्रसव पीड़ा शुरू होने पर, उसने एक बेरी के नीचे बच्चे को जन्म दिया और दूध-दही बेचने चली गई। वह गांव वालों को गुमराह करके केवल भैंस के दूध को गाय के दूध के रूप में बेचा।

इस पाप के कारण, बच्चे को हल लग गया। किसान ने झरबेरी के कांटों से बच्चे के पेट में टांके लगाए और छोड़ दिया। यह कथा व्रति को बताती है कि व्रत को पूर्ण श्रद्धा और सही तरीके से करना चाहिए।

बिना हल जोते उगता है पसहर चांवल

पसहर चांवल को खेतों में उगाया नहीं जाता। यह चांवल बिना हल जोते अपने आप खेतों की मेड़, तालाब पोखर आदि जगहों पर उगता है। भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ के जन्म उत्सव वाले दिन हलषष्ठी मनाए जाने के कारण बलदाऊ के शस्त्र हल को महत्व देने के लिए बिना हल चलाए उगने वाले पसहर चांवल का पूजा में इस्तेमाल किया जाता है। पूजा के दौरान महिलाएं पसहर चांवल को पकाकर भोग लगाती हैं साथ ही चांवल का सेवन कर व्रत तोड़ती है।

सगरी बनाकर की जाती है पूजा

कमरछठ की पूजा के लिए महिलाएं गली-मोहल्ले में मिलकर प्रतीक स्वरूप दो सगरी(तालाब) के साथ मिट्टी की नाव बनाया और फूल-पत्तों से सगरी को सजाकर वहां महादेव व पार्वती की पूजा की। दिनभर निर्जला व्रत रहकर शाम को सूर्य डूबने के बाद व्रत खोलेंगी। मरोदा निवासी ज्योति चंद्राकर, दिव्या साहू ने बताया कि यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए भी किया जाता है। बिहार में जिस तरह छठ मईया की पूजा होती है उसी तरह छत्तीसगढ़ में कमरछठ का महत्व है जो संतान प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए किया जाता है।

6 अंक का होता है महत्व

कमरछठ में 6 अंक का काफी महत्व है, सगरी में 6-6 बार पानी डाला जाता है. साथ ही 6 खिलौने, 6 लाई के दोने और 6 चुकिया यानि मिट्टी के छोटे घड़े भी चढ़ाए जाते हैं। 6 प्रकार के छोटे कपड़े सगरी के जल में डुबोए जाते हैं और संतान की कमर पर उन्हीं कपड़ों से 6 बार थपकी दी जाती है, जिसे पोती मारना कहते हैं।