कोलकाता,। मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर की वंशज बेगम सुल्ताना आज
हावड़ा की एक झोपड़ी में रहकर अपने गौरवशाली इतिहास की छाया में जी रही
हैं। 1857 के विद्रोह के बाद बहादुर शाह जफर को निर्वासन की सजा मिली थी
लेकिन उनके कुछ वंशज भारत लौट आए थे। उन्हीं में से एक मिर्जा मोहम्मद
बेदार बख्त की पत्नी बेगम सुल्ताना अब हावड़ा के फोरशोर रोड के पास गंगा
किनारे एक झोपड़ी में रहती हैं।
झोपड़ी में रोशनी बहुत कम आती है और
मोबाइल नेटवर्क तो ज्यादातर समय नहीं रहता। बेगम सुल्ताना अब ज्यादा देर
तक चल भी नहीं पातीं क्योंकि उनके घुटनों में बहुत दर्द है। इसके बावजूद
उन्हें बस्ती के अंदर पानी भरने के लिए गंदगी और कीचड़ से होकर गुजरना
पड़ता है।
बेगम सुल्ताना का दावा है कि उनके वंश का हिस्सा लाल किला
में है और उन्होंने इसके लिए अदालत का दरवाजा भी खटखटाया है। हालांकि, वे
अब हावड़ा की बस्ती में बेहद मुश्किल हालात में जी रही हैं लेकिन उनके जीवन
में हाल ही में एक नई रोशनी की किरण आई है। कोलकाता के एक निर्देशक सौर्य
सेनगुप्ता उनके जीवन पर एक फिल्म बनाने जा रहे हैं।
सौर्य सेनगुप्ता
ने पहले भी कई डॉक्यूमेंट्री बनाई हैं और इस बार वे 'द लॉस्ट क्वीन' नामक
फिल्म बना रहे हैं, जिसमें बेगम सुल्ताना और उनके वंशजों की कहानी को
प्रमुखता से दिखाया जाएगा। निर्माता इंद्रनील विश्वास के साथ मिलकर यह
फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए बनाई जाएगी।
सुल्ताना बेगम का कहना
है कि फिल्म की शूटिंग के दौरान यदि उन्हें दिल्ली ले जाया जाता है तो वे
लाल किला जरूर देखेंगी, जिसे वे अपने पूर्वजों का ही मानती हैं। सुल्ताना
ने बताया कि तीन साल पहले उन्होंने भारत सरकार के खिलाफ एक मामला दर्ज किया
था, जिसमें उन्होंने लाल किला में हिस्सेदारी की मांग की थी। हालांकि,
दिल्ली हाई कोर्ट ने उनके मामले को स्वीकार नहीं किया और इसे समय की
बर्बादी करार देते हुए खारिज कर दिया।
सुल्ताना बेगम का कहना है कि
उनके परिवार को कभी भी सरकार से कोई मदद नहीं मिली। जहां अन्य राजवंशों के
पास बड़े-बड़े महल और पेंशन हैं, वहीं उन्हें कुछ भी नहीं मिला। वे कहती
हैं कि "जो वंश ताजमहल बनवा सकता है, उसके सदस्य आज झोपड़ी में रहने को
मजबूर हैं।
1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश शासन ने बहादुर
शाह जफर को भारत से निर्वासित कर दिया था और उन्हें उनके परिवार के कुछ
सदस्यों के साथ रंगून (वर्तमान में यांगून) भेज दिया गया। वहां 1862 में
उनकी मृत्यु हो गई। बहादुर शाह जफर के बाद उनके पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र
ने देश के विभिन्न हिस्सों में भटकते हुए आखिरकार बंगाल में शरण ली।
सुल्ताना
बेगम बहादुर शाह जफर के प्रपौत्र मिर्जा मोहम्मद बेदार बख्त की पत्नी हैं
और उन्हें केंद्रीय गृह मंत्रालय से 'सुल्ताना' के रूप में मान्यता प्राप्त
है। वे 1980 से 400 रुपये मासिक पेंशन प्राप्त कर रही थीं, जो अब बढ़कर
6000 रुपये हो गई है।
सुल्ताना ने बताया कि उनके पति की मृत्यु के
बाद उन्होंने चूड़ी बनाने की फैक्टरी में दिहाड़ी मजदूर के रूप में और चाय
की दुकान पर काम किया। अब वे अपनी पेंशन की थोड़ी सी राशि से सुप्रीम कोर्ट
में एक और मामला दर्ज करने की योजना बना रही हैं, ताकि उनके बच्चों और
पोते-पोतियों को उनकी तरह कठिन जीवन न जीना पड़े।
राज्य सरकार की
विधवा पेंशन से वे डरती हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि इसे लेने पर दिल्ली
की पेंशन बंद हो जाएगी। गरीबी और संघर्ष के बावजूद सुल्ताना अपने वंश के
गौरव को बनाए रखने के लिए दृढ़ हैं और अपने बच्चों के लिए बेहतर भविष्य की
उम्मीद करती हैं।