कौशांबी। सिराथू तहसील की एक गांव की छोटी पंचायत का एक फैसला हर
खास-ओ-आम के लिए चर्चा का विषय बना हुआ है। पंचायत का यह फैसला चिलचिलाती
गर्मी में पशु-पक्षियों, ख़ास कर नेशनल बर्ड मोर के लिए किसी वरदान से कम
नहीं है। कैसे एक गांव की पंचायत पशु-पक्षियों को बचाने के लिए नई मुहीम
खुद के प्रयास से शुरू की है। और क्या है इस गांव की पंचायत का फैसला।
जानें इस रिपोर्ट में.....
गर्मिया शुरू होते ही
हर ख़ास-ओ-आम आदमी पानी की किल्लत से रोज दो चार होता है। सिराथू तहसील के
सेलरहा पश्चिम गांव की पंचायत ने एक अहम फैसला लिया। गांव के लोगों ने सबसे
पहले आम सहमती बनाने के लिए आम बैठक गांव में बुलाई। लोग जमा हुए तो गांव
की महिलाओं ने गीत संगीत के जरिये पानी का महत्त्व युवा पीढ़ी को समझाया।
गीत संगीत का दौर ख़त्म हुआ तो गांव की पंचायत ने आम सहमती से अपना फैसला
सुनाया। इस फैसले में गांव के हर इंसान से अपील की गई कि वह हर रोज अपने
दैनिक उपयोग का 2 फीसदी पानी पशु-पक्षियों...खास कर नेशनल बर्ड मोर के लिए
बचायेंगे। इतना ही नहीं मोर को इंसान से कोई खतरा न हो इसके लिए लोगों को
यह सुझाव दिया गया कि वह अपने खेत-खलिहान,घरों की छत,खाली पड़े गड्डों में
पानी भर कर रखेंगे, ताकि पशु-पक्षियों के साथ मोर भी बेख़ौफ़ होकर इस पानी को
पीकर अपनी जिन्दगी को बचा सके।
ग्राम प्रधान लवलेश कुमार
ने बताया, भीषण गर्मी से आम आदमी बेहाल है। तो पशु पक्षियों का हाल बेहद
खराब होगा। इसी विचार के साथ उन्होंने अपने गांव के महिला पुरुष बड़े
बुजुर्ग के सतह बैठ कर पशु पक्षियों खास कर मोर के लिए पानी की वैकल्पिक
व्यवस्था तैयार करने की रूप रेखा तैयार की। जिसको ग्राम पंचायत ने आम बैठक
में प्रस्ताव बनाकर ना सिर्फ पास किया बल्कि हर व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन
में पानी को बचाकर पशु पक्षी को रखने की बात पर आम सहमति जताई। यह मुहिम
गांव तक सीमित नहीं रहने देंगे। वह आस पास के गांव में फैलाएंगे और लोगों
को प्रेरित करेंगे।
उन्होंने कहा कि इंसान जिन्दगी
के लिए तो तमाम प्रयास सामने आते हैं, लेकिन पशु-पक्षियों की ज़िंदगी बचाने
के लिए अनूठी मुहिम का गांव का हर आदमी कायल हो चुका है। पंचायत का फैसला
अब आस-पास के गांव के लोग भी बिना किसी रोक के अमल में ला रहे हैं।
ग्रामीण
महिला हसीना बेगम के मुताबिक, पशु पक्षियों के लिए पानी बचाने की लिए बैठक़
की। बैठक में तय किया गया है कि हर महिला अपने घर से पानी बचा कर पशु
पक्षियों के लिए निकाल कर रखेंगी। वह खुद और अपने आसपास की महिलाओं को भी
इसके लिए प्रेरित करेंगी।
युवा ओमदत्त दुबे ने बताया,
गांव में प्रधान द्वारा शुरू की गई मुहिम का वह स्वागत करते हैं। वह खुद भी
पानी बचाओ मुहिम में शामिल होंगे। आसपास के लोगों को इसके लिए जागरूक
करेंगे। क्योंकि धार्मिक मान्यता कि यह कहती है कि 'परहित सरिस धर्म नहीं
भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई'... इसी वाक्य को ध्यान में रख कर उन्होंने और
उनके साथियों ने पंचायत के फैसले का सम्मान किया है। जिसका नतीजा है कि अब
बड़े-बूढ़े,औरतों और बच्चों ने खुद ही इस जिम्मेवारी को अपने कंधों पर ले ली
है।
राष्ट्रीय पक्षी मोर के लिए पानी के आरक्षण की मुहिम
की रफ़्तार काम न पड़ जाय, इसके लिए गांव के लोगों ने सप्ताह में एक दिन
संगीतमय बैठक कर गांव के लोगों में नई उर्जा डालते हैं। इतना ही नहीं
जागरूकता बैठक के बाद गांव के युवा और बुजुर्ग हर हफ्ते में बैठक कर
बाकायदा अपनी इस मुहिम की समीक्षा भी करते हैं।
उल्लेखनीय
है कि गंगा और यमुना जैसी दो जीवन दायनी नदियों के द्वाब में कौशांबी बसा
है। कौशांबी ने समय के आईने में बड़े ही उतार-चढ़ाव को अपनी आंखों से देखा
है। इसने सोलह महाजनपदों में एक वत्स देश की राजधानी कोशम होने का गौरव
पाया है। इसी ने जैन धर्म के तीर्थंकर महावीर और भगवान तथागत बुद्ध जैसे
युग पुरुषों की तपस्थली रही है। अपने अंदर अतुलनीय गौरव को समेटे कौशांबी
आज आधुनिक दौर में पानी जैसी बुनियादी समस्या से रोज जंग लड़ता है। इसके 8
ब्लॉकों में 6 ब्लॉक गर्मियों में पानी की कमी के चलते डार्क जोन घोषित है।
ऐसे में पानी की किल्लत से आम आदमी के साथ ही पशु-पक्षी भी पानी की कमी से
हलकान रहते हैं।
अनोखी पहल : राष्ट्रीय पक्षी मोर के लिए महिलाएं जुटा रही हैं पानी
