पटना,। बिहार की राजनीति एक बार फिर स्थिरता, लंबे कार्यकाल
और सुशासन की बहस के केंद्र में है। प्रदेश की सत्ता में उतार-चढ़ाव,
गठबंधन की उठापटक और दल-बदल के बीच यह सवाल जोर पकड़ रहा है कि क्या
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार में वही स्थिर शासन का दौर दोबारा ला
पाएंगे, जिसकी मिसाल स्वतंत्र भारत के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण
सिंह (डॉ. एसके सिंह) ने कायम की थी?
श्रीकृष्ण सिंह : 14 साल 304 दिनों की अभूतपूर्व स्थिरता
1946
से 1961 तक लगातार सत्ता में रहे डॉ. श्रीकृष्ण सिंह बिहार की राजनीति के
इतिहास में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता हैं। उनके
कार्यकाल ने बिहार को प्रशासनिक मजबूती, औद्योगिक विकास और राजनीतिक
स्थिरता का वह मॉडल दिया, जिसे आज भी 'गोल्डन पीरियड' कहा जाता है। यही वजह
है कि जब भी बिहार में स्थिर नेतृत्व की चर्चा होती है, उनकी छवि सबसे आगे
खड़ी दिखाई देती है।
नीतीश कुमार : 18 साल से राजनीति का सबसे प्रभावकारी चेहरा
नीतीश
कुमार भले बीच-बीच में इस्तीफों, गठबंधन-परिवर्तनों और राजनीतिक समीकरणों
के कारण अलग-अलग कार्यकालों में रहे हों, लेकिन 2005 से 2024 तक वे लगभग
पूरे समय बिहार की सत्ता और सत्ता की धुरी बने रहे। सुशासन बाबू की छवि,
सामाजिक न्याय की नई व्याख्या और विकास की राजनीति ने उन्हें पिछले दो
दशकों में बिहार का सबसे निर्णायक चेहरा बना दिया। राजनीतिक विश्लेषक लव
कुमार मिश्र की मानें तो नीतीश का प्रभाव श्रीकृष्ण सिंह के बाद सबसे स्थिर
और सबसे व्यापक माना जाता है। भले ही समयखंड अलग-अलग टुकड़ों में रहा हो,
लेकिन जनता पर पकड़ लगातार मजबूत रही।
स्थिरता की तलाश में बिहार, क्या इतिहास दोहराएगा खुद को?
बिहार
की राजनीति में पिछले 60 वर्षों में ऐसा कोई नेता नहीं आया जिसने
श्रीकृष्ण सिंह जैसा निरंतर और ठोस नेतृत्व दिया हो। लालू प्रसाद यादव का
15 वर्षों का दौर सामाजिक बदलाव का प्रतीक रहा, लेकिन राजनीतिक-प्रशासनिक
अस्थिरता की आलोचनाएं भी उससे जुड़ी रहीं। वहीं, नीतीश कुमार ने विकास,
कानून-व्यवस्था और प्रशासनिक सुधार को केंद्र में रखकर लंबी रेस में खुद को
स्थापित किया। आज जब बिहार में फिर से स्थिरता, सुशासन और दीर्घकालिक
नेतृत्व की बहस गर्म है, तब राजनीतिक हलकों में यह तुलना स्वाभाविक रूप से
सामने आती है। क्या नीतीश अब श्रीकृष्ण सिंह की तरह एक बार फिर बिहार को
स्थिर नेतृत्व का नया अध्याय दे सकते हैं?
जनता की उम्मीदें और राजनीतिक संकेत
लोकसभा
चुनाव 2024 के बाद बिहार की राजनीति में जो नए समीकरण बने हैं, उन्होंने
नीतीश को फिर केंद्र में ला खड़ा किया है। उनकी स्वीकार्यता, नेतृत्व कौशल
और प्रशासन पर पकड़ को देखते हुए कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार
एक बार फिर दीर्घकालिक शासन मॉडल की ओर बढ़ सकता है। हालांकि विपक्ष तर्क
देता है कि आज का समय 1950-60 के दशक जैसा नहीं है, इसलिए किसी भी नेता के
लिए श्रीकृष्ण सिंह जैसी स्थिरता पाना आसान नहीं। लेकिन- समर्थकों का दावा
है कि बिहार में जनता अब छलांग वाले विकास, स्थिर माहौल और स्पष्ट नेतृत्व
चाहती है और नीतीश उस उम्मीद के सबसे सशक्त केंद्र बने हुए हैं।
बिहार फिर स्थिर नेतृत्व की राह पर, नीतीश लिखेंगे श्रीकृष्ण सिंह युग का अगला अध्याय
बिहार
की राजनीति में स्थिरता की तलाश नई नहीं, लेकिन आज इसकी जरूरत पहले से
कहीं ज्यादा महसूस हो रही है। इतिहास गवाह है कि श्रीकृष्ण सिंह ने बिहार
को जिस मजबूती पर खड़ा किया था, वैसी स्थिरता लौटाने का अवसर फिर सामने है।
अब यह समय ही बताएगा कि क्या नीतीश कुमार उस विरासत को अगला अध्याय दे
पाएंगे या बिहार को किसी नए चेहरे की प्रतीक्षा करनी होगी। बहरहाल, राजनीति
की इस उठापटक भरी जमीन पर सवाल वही है कि क्या नीतीश फिर से दोहराएंगे
श्रीकृष्ण सिंह वाला स्थिरता का स्वर्णिम दौर?

