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एसएससी मुख्यालय के बाहर नौकरी गंवाने वाले शिक्षकों का अनिश्चितकालीन धरना सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी नहीं जारी हुई योग्य उम्मीदवारों की सूची


कोलकाता, ।सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2016 की शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को अवैध घोषित किए जाने के बाद राज्यभर के करीब 26 हजार शिक्षकों की नौकरियां चली गईं। इसके बाद योग्य उम्मीदवारों की सूची जारी न होने से नाराज़ होकर सोमवार रात करीब दो हजार शिक्षकों ने पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (डब्ल्यूबीएसएससी) के मुख्यालय के बाहर अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया।

शिक्षकों का कहना है कि वे अब सब्र खो चुके हैं। आयोग द्वारा निर्धारित शाम छह बजे की समय-सीमा तक सूची जारी न किए जाने के बाद प्रदर्शनकारियों ने आयोग कार्यालय की घेराबंदी की और बैरिकेड तोड़ने की कोशिश की। हालात बिगड़ने पर पुलिस से उनकी झड़प भी हुई।

आंदोलनकारी शिक्षक यह जानकर और भड़क गए कि आयोग केवल पहले तीन काउंसलिंग राउंड को मान्यता दे रहा है, जबकि कुल 12 राउंड हुए थे। इसका मतलब है कि चौथे दौर के बाद जिनकी नियुक्ति हुई थी, उन्हें ‘योग्य उम्मीदवारों’ की सूची में नहीं माना जाएगा।

धरनास्थल पर आयोग के अध्यक्ष सिद्धार्थ मजूमदार और एक 13 सदस्यीय शिक्षक प्रतिनिधिमंडल के बीच शाम 4:30 बजे से देर रात तक बैठक चली। हालांकि, मजूमदार ने बयान में यह स्पष्ट किया कि आयोग सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करेगा और जिन शिक्षकों ने सेवा दी है, उन्हें वेतन दिया जाएगा। उन्होंने यह नहीं बताया कि 'दागी या निर्दोष' उम्मीदवारों की सूची कब जारी की जाएगी।

धरने पर बैठे शिक्षकों ने न केवल डब्ल्यूबीएसएससी अध्यक्ष के इस्तीफे की मांग की, बल्कि राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु से भी पद छोड़ने को कहा। उन्होंने आयोग के कार्यालय के साथ-साथ उससे सटे डेरोज़ियो भवन की भी घेराबंदी की, ताकि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष रमानुज गांगुली कार्यालय से बाहर न जा सकें।

धरना देने से पहले शिक्षक करुणामयी सेंट्रल पार्क से आचार्य सदन (डब्ल्यूबीएसएससी मुख्यालय) तक मार्च करते हुए पहुंचे थे।

इस आंदोलन को आर. जी. कर अस्पताल दुष्कर्म और हत्या मामले में न्याय की मांग को लेकर सक्रिय रहे 'वेस्ट बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट' का भी समर्थन मिला है।

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने तीन अप्रैल को दिए फैसले में भर्ती प्रक्रिया में भारी अनियमितताओं का हवाला देते हुए 2016 की पूरी चयन सूची को रद्द कर दिया था, जिसके चलते राज्य सरकार के अधीन चल रहे स्कूलों से हजारों शिक्षकों और गैर-शिक्षकीय कर्मियों की सेवाएं समाप्त हो गईं।