पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार द्वारा बर्खास्त गैर-शिक्षण कर्मियों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता योजना पर कलकत्ता हाईकोर्ट की अंतरिम रोक के बाद सियासी बवाल तेज हो गया है। विपक्षी दलों ने इसे सरकार की भ्रष्ट नीतियों को ढकने का प्रयास बताया है, वहीं सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने इसे संवेदनशील मुख्यमंत्री की मानवीय पहल करार दिया।
पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने इस रोक को “अनिवार्य” बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बर्खास्त किए गए सभी गैर-शिक्षण कर्मियों —चाहे वे योग्य हों या भ्रष्टाचार में लिप्त —सभी को एकसमान वित्तीय सहायता देने की अधिसूचना जल्दबाज़ी में जारी कर दी।
अधिकारी ने कहा कि यह कोई पहली बार नहीं है जब राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार को ढकने के लिए इस तरह की वित्तीय राहत की घोषणा की है। इस मामले में भी उन्होंने वही किया और इसलिए कोर्ट की रोक जरूरी थी।
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राजनीतिक लाभ के लिए थी योजना : शंकर घोष
विधानसभा में भाजपा विधायक दल के मुख्य सचेतक शंकर घोष ने आरोप लगाया कि इस योजना का असली उद्देश्य उन्हीं लोगों को बचाना था, जिन्होंने तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को पैसे देकर नौकरियां पाई थीं।
घोष ने कहा कि राज्य सरकार की मंशा साफ है —असली उद्देश्य वित्तीय राहत नहीं, बल्कि दोषियों को संरक्षण देना था। इसी वजह से कोर्ट की रोक कानूनी रूप से अपरिहार्य थी।
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संवेदनशील मुख्यमंत्री की मानवीय पहल : कुणाल घोष
इस पूरे मामले पर तृणमूल कांग्रेस के राज्य महासचिव कुणाल घोष ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की एक और मानवीय पहल को राजनीतिक स्वार्थों ने बाधित कर दिया है।
उन्होंने कहा कि मैं कानूनी पक्ष पर टिप्पणी नहीं कर सकता, लेकिन याचिकाकर्ताओं की मंशा जरूर सवालों के घेरे में है। यह रोक उन कर्मचारियों के लिए अन्याय है, जो नौकरी गंवाकर संकट में हैं।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य सरकार ने समूह-सी और समूह-डी श्रेणियों के गैर-शिक्षण कर्मियों को वित्तीय सहायता देने का जो आदेश निकाला, उसमें कई कानूनी खामियां थीं।
हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा कि जब राज्य कोष से इतनी बड़ी राशि खर्च की जा रही है, तो उसके बदले में राज्य को क्या लाभ मिलेगा। इस सवाल का सरकार के पास कोई स्पष्ट उत्तर नहीं था, जिससे कोर्ट ने असंतोष जताते हुए अंतरिम रोक लगा दी।
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