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अमौर विधानसभा में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार, विकास की राह पर अब भी कई चुनौतियाँ


पूर्णिया,  वर्ष 1977 में अस्तित्व में आई अमौर विधानसभा सीट ने अब तक 11 विधायकों को विधानसभा भेजा है, लेकिन क्षेत्र की तस्वीर आज भी नहीं बदली है।

पूर्णिया जिले का हिस्सा होने के बावजूद यह क्षेत्र परिसीमन के बाद किशनगंज लोकसभा में आता है। पूर्णिया और किशनगंज की सीमा पर स्थित अमौर चारों ओर महानंदा, कनकई, बकरा और परमान नदियों से घिरा हुआ है, जो इसके पिछड़ेपन का मुख्य कारण बन गए हैं। हर साल इन नदियों की बाढ़ और कटाव यहां का भूगोल बदल देती है, घर-द्वार, फसल और लोगों की जमा पूंजी सब कुछ नदी में समा जाती है।

बाढ़ और कटाव से विस्थापन व पलायन यहां की स्थायी समस्या है। खेती योग्य जमीन नदी में कट जाने और फसल बाढ़ के पानी में बह जाने से हर साल हजारों लोग बेरोजगार हो जाते हैं। मजदूर वर्ग का एक बड़ा हिस्सा रोजी-रोटी की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर पलायन करता है। पिछली बार एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने इस सीट पर कब्जा जमाया था। अमौर प्रखंड के 25 पंचायत और बैसा प्रखंड के 16 पंचायत इस विधानसभा क्षेत्र में आते हैं, जहां की जनता अब भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है।

बाढ़ और कटाव की समस्या का स्थायी समाधान अब तक नहीं हो सका है। महानंदा, परमान और कनकई नदियों के पेट में सैकड़ों एकड़ भूमि समा चुकी है। कई स्कूल और धार्मिक स्थल कटाव की भेंट चढ़ चुके हैं। हर साल प्रशासन अस्थायी राहत कार्य तो करता है, लेकिन स्थायी समाधान की दिशा में कोई ठोस कदम अब तक नहीं उठाया गया। खाड़ी घाट और रसेली घाट पर पुल निर्माण अधूरा है, जिसके कारण आज भी कई गांवों का संपर्क टूट जाता है। बरसात के दिनों में लोगों का एकमात्र सहारा नाव और चचरी पुल ही होता है।

स्वास्थ्य सुविधाएं भी बदहाल हैं। अधिकांश पीएचसी और एपीएचसी में डॉक्टरों और कर्मियों की भारी कमी है। कहीं भवन नहीं हैं तो कहीं उपकरणों का अभाव है। इलाज के लिए लोगों को पूर्णिया जाना पड़ता है, जो आवागमन की कठिनाइयों के कारण बेहद मुश्किल हो जाता है। क्षेत्र की बड़ी आबादी झोला छाप चिकित्सकों पर निर्भर है।

शिक्षा के क्षेत्र में भी स्थिति चिंताजनक है। वर्षों से एक सरकारी कॉलेज खोलने की मांग अधूरी है। बाढ़ प्रभावित इलाका होने के कारण स्कूल अक्सर बंद रहते हैं और पढ़ाई बाधित होती है। कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण अधिकांश छात्र उच्च शिक्षा के लिए बाहर नहीं जा पाते।

नदियों से घिरे इस क्षेत्र में आज भी सड़कों और पुलों का जाल नहीं बिछ पाया है। कई गांव अब भी पक्की सड़क से वंचित हैं। जाहिर है, इस बार के चुनाव में बाढ़ नियंत्रण, पुल-पुलिया, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे प्रमुख रहेंगे। अमौर की जनता विकास की उम्मीदों के साथ फिर से अपने जनप्रतिनिधियों की ओर देख रही है।