गांधीनगर, । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने बुधवार को गांधीनगर के कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती ध्यान केंद्र में आचार्य महाश्रमणजी से मुलाकात की। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मैं हर साल अपनी बैटरी चार्ज करने यहां आता हूं। डॉ भागवत ने कहा कि व्यक्तिगत चरित्र और राष्ट्रीय चरित्र का आधार नैतिकता है और नैतिकता का आधार आध्यात्मिकता है, क्योंकि आध्यात्मिकता के बिना नैतिकता का कोई अर्थ नहीं है। इसी वजह से मैं ऐसे स्थानों पर जाता हूं जहां से मुझे अपने काम के लिए आवश्यक ऊर्जा मिलती है।
आचार्य महाश्रमणजी की अहिंसा की शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि यदि ऐसा दृष्टिकोण हो, “सबमें मैं हूं और सब मुझमें हैं”, तो सामाजिक हिंसा रुक जाएगी। अब जबकि संघ के 100 वर्ष पूरे हो गए हैं, हमारे कार्यकर्ताओं ने सोचा कि हमें समाज में एक ऐसा कार्यक्रम लेकर जाना चाहिए जिससे पूरे समाज में ऐसी सद्भावना पैदा हो, जिसके आधार पर नैतिकता का निर्माण हो। इसलिए शताब्दी वर्ष में कोई बड़ा कार्यक्रम नहीं किया जाएगा, क्योंकि यदि हमने देश के लिए काम करते हुए 100 वर्ष पूरे कर लिए हैं, तो यह हमारा कर्तव्य था, इसके लिए उत्सव मनाने की कोई आवश्यकता नहीं है।
सरसंघचालक ने कहा कि हमने पंच परिवर्तन नामक एक कार्यक्रम के बारे में सोचा है जिसमें पांच प्रकार के कार्यक्रम हैं: 1. पारिवारिक शिक्षा, 2. सामाजिक समरसता, 3. पर्यावरण संरक्षण, 4. नागरिक कर्तव्य 5. आत्मनिर्भर जीवन (स्वदेशी)। उन्होंने कहा कि स्वयंसेवकों ने इन सभी बातों का अपने व्यवहार में पालन करना शुरू कर दिया है। शताब्दी वर्ष में स्वयंसेवक समाज में जाकर इन सब बातों को बताएंगे तथा समाज को एकजुट रखते हुए उपरोक्त दिशा में चलने वाले लोगों की संख्या बढ़ाने का प्रयास करेंगे।
सबमें मैं हूं और सब मुझमें हैं, यही वह दृष्टिकोण है जिससे सामाजिक हिंसा रुकेगी : मोहन भागवत
