मेदिनीपुर, । पश्चिम मेदिनीपुर की हरियाली में छुपा है एक अद्भुत स्थान — जहां प्रकृति, आस्था और इतिहास एक साथ सांस लेते हैं। खड़गपुर से केशपुर की ओर जाती पथरीली सड़क पर, लगभग 38 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद एक मोड़ आता है जो भादुतला पुलिस स्टेशन की विपरीत दिशा में आगे बढ़ता है। इस मार्ग पर 11 किलोमीटर तक जाने पर आनंदपुर नामक ग्राम आता है, और वहीं पास में स्थित छोटा-सा गांव ‘कानासोल’। यही वह स्थान है जहां सदियों पुराना ‘बाबा झाड़ेश्वर स्वंभूव लिंग मंदिर’ आज भी अपनी दिव्यता से क्षेत्र को आलोकित कर रहा है।
कहते हैं यह मंदिर लगभग 350 (साढ़े तीन सौ)वर्ष पुराना है। इस प्राचीन धरोहर का निर्माण उस समय के जंगलों के राजा अलाल देव राय ने करवाया था, और इसके संचालन की जिम्मेदारी उस काल के विद्वान ब्राह्मण शीतलानंद मिश्र ने संभाली थी। किंतु इस मंदिर की वास्तविक पौराणिकता इससे कहीं गहरी है, क्योंकि यहां स्थित शिवलिंग स्वयंभू है अर्थात् किसी मानव हस्त से निर्मित नहीं, बल्कि धरती की गोद से स्वयं प्रकट हुआ।
ग्रामीण जनश्रुति के अनुसार, कई वर्ष पूर्व यह पूरा क्षेत्र घने जंगलों से घिरा हुआ था। गांव के ग्वाले प्रतिदिन अपने मवेशी लेकर जंगल में चराने जाया करते थे। उन्हीं में से एक दिन एक गाभिन गाय प्रतिदिन एक विशेष स्थान पर जाकर अपने थनों से स्वयं दूध बहाने लगी। यह रहस्यमय दृश्य देखकर ग्वाले ने गांव के बुजुर्गों को बताया, लेकिन किसी को विश्वास नहीं हुआ। जब बात फैलने लगी तो कुछ ग्रामीण और स्वयं राजा अलाल देव भी वहां पहुंचे। सभी ने अपनी आंखों से उस चमत्कारी घटना को देखा और विस्मित रह गए।
उसी रात गांव के एक ब्राह्मण, शीतलानंद मिश्र को स्वप्न में भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। शिव ने उन्हें आदेश दिया कि जिस स्थान पर यह अद्भुत घटना घटित हुई, वहीं उनके लिए एक मंदिर का निर्माण कराया जाए। राजा और ग्रामीणों ने मिलकर जंगलों को साफ किया, और उसी पवित्र भूमि पर इस मंदिर का निर्माण कराया गया। कहते हैं कि जिस स्थल पर शिवलिंग प्रकट हुआ था, वहीं आज भी उसी स्थान पर बाबा झाड़ेश्वर विराजमान हैं।
आज यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि लोक-आस्था और सामाजिक एकता का प्रतीक बन चुका है। चारों ओर फैले हरियाले वृक्ष, मंद समीर, और मंदिर के प्रांगण में गूंजते “हर हर महादेव” के स्वर वातावरण को देवत्व से भर देते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि इस स्थल की शांति में एक अदृश्य ऊर्जा का अनुभव होता है, जैसे स्वयं भोलेनाथ अपने भक्तों को आशीष दे रहे हों।
चैत्र मास में यहां भव्य मेले का आयोजन होता है, जिसे स्थानीय लोग “चड़क मेला” के नाम से जानते हैं। इस अवसर पर लाखों की संख्या में भक्त बाबा झाड़ेश्वर के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। दूर-दूर से आए श्रद्धालु इस मेले को आस्था का पर्व मानते हैं, जिसमें भक्ति, उत्सव और संस्कृति का अद्भुत संगम दिखाई देता है।
बाबा झाड़ेश्वर का यह मंदिर केवल पश्चिम मेदिनीपुर की पहचान नहीं, बल्कि भारत की सनातन परंपरा की आत्मा का प्रतीक है। यहां की कथा हमें यह सिखाती है कि जहां प्रकृति, भक्ति और मानवता एक साथ मिलते हैं, वहीं सच्चे अर्थों में ईश्वर का वास होता है। जिस तरह उस गाय की निष्ठा और मासूमियत ने इस स्थान की पवित्रता को उजागर किया, उसी तरह आज भी भक्तों की आस्था इस स्थल को जीवंत बनाए हुए है।
घने वृक्षों से घिरा यह छोटा-सा मंदिर भारत की उस पुरातन आत्मा का जीवंत प्रमाण है, जो आज भी हर आस्तिक के हृदय में अमर है — बाबा झाड़ेश्वर आनंदपुर, शिव की अनादि ज्योति और आस्था का अनश्वर प्रतीक।
बाबा झाड़ेश्वर : पश्चिम मेदिनीपुर की आस्था और इतिहास का अनमोल अध्याय
