महाकुंभ
नगर । महाकुम्भ में तृतीय अमृत स्नान से पूर्व
श्रीमद्आद्यजगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा आरंभ की गई संन्यास परम्परा के
अनुरूप जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामण्डलेश्वर अनन्तश्री विभूषित स्वामी
अवधेशानन्द गिरि महाराज पूज्य प्रभुश्री जी द्वारा सनातन हिन्दू धर्म
संस्कृति के प्रचार-प्रसार एवं संवर्धन हेतु मध्य रात्रि में श्री पंचदशनाम
जूना अखाड़ा के नागा-संन्यासियों को बड़ी संख्या में महिला और पुरुष नागा
साधुओं को संन्यास दीक्षा दी गई।
महाकुम्भ में प्रभु प्रेमी संघ
शिविर में रविवार को स्वामी अवधेशानन्द गिरि महाराज ने बताया कि
श्रुति-स्मृति पुराणानाम् आलयं करुणालयम्। नमामि भगवत्पादं शंकरं लोक
शंकरम् । उन्होंने कहा कि संन्यास का अर्थ कामनाओं के सम्यक न्यास से है।
अतः संन्यासी होना अर्थात् अग्नि, वायु, जल और प्रकाश हो जाना है। संन्यासी
के जीवन का प्रत्येक क्षण परमार्थ को समर्पित होता है। भारत की वैदिक
सनातनी संस्कृति और उसकी सांस्कृतिक विरासत की दिव्य अभिव्यक्ति महाकुम्भ
हैं ।
जूना अखाड़ा के नागा संन्यासियों को बड़ी संख्या में महिला और पुरुष नागा साधुओं को दी गई संन्यास दीक्षा
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