महाकुम्भ
नगर। कुंभ मेले में लोगों का एक कौतूहल और आकर्षण नागा
साधुओं को लेकर होता है। साधु समाज में नागा साधुओं का जीवन सबसे अटपटा और
जटिल होता है। आम जन के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग कर चुके इन नागा साधुओं
का जीवन बहुत रहस्यमयी लगता है।
नागा का शाब्दिक अर्थ जानें तो उसे
’खाली’, कहा जा सकता है, जो कि एक ऐसे साधु जिनके पास गहरी आध्यात्मिक
शक्ति के अलावा कुछ भी नहीं होता है। लेकिन आपको बता दें कि नागा साधु के
पास वैसे तो कुछ भी नहीं होता है, लेकिन उनके पास सत्रह श्रृंगार की
सामग्री अवश्य ही होती हैं।
लंगोट : नागा बाबाओं की लंगोट भी अलग तरह की होती है। अक्सर जंजीर से बंधा चांदी का टो होता है।
भभूत : पूरे शरीर पर कई तरह की भभूति या विभूति का लेप लगाते हैं।
चंदन : बाजू और माथे पर चंदन का लेप लगाते हैं।
रुद्राक्ष की माला : गले के अलावा बाहों पर रुद्राक्ष की मालाएं पहनते हैं।
अंगूठी : हाथों में कई प्रकार की अंगुठियां पहनते हैं।
पंच केश : जिसमें लटों को 5 बार घूमा कर लपेटा जाता है, जो पंच तत्व की निशानी मानी जाती है।
कड़ा : हाथों में कड़ा पीतल, तांबें, सोने या चांदी के अलावा लोहे का भी हो सकता है।
रोली का लेप : माथे पर रोली का लेप लगाते हैं।
कुंडल : कानों में चांदी या सोने के बड़े-बड़े कुंडल धारण करते हैं।
चिमटा : हाथों में चिमटा होना भी उनके श्रृंगार का एक हिस्सा ही है।
डमरू : हाथों में डमरू भी श्रृंगार में ही शामिल होता है।
कमंडल : उनके हाथों में कमंडल होता है, जो कि वो भी श्रृंगार का एक हिस्सा ही है।
जटाएं : नागा साधु गुथी हुई जटाओं को विशेष प्रकार से संवारते हैं।
तिलक : शैव और वैष्णव तिलक वे प्रमुखता से लगाते हैं, इसके अलावा भी कई प्रकार के तिलक वे लगाते हैं।
काजल : साधु खासकर आंखों में सुरमा लगाते है, साथ ही काजल भी लगाते हैं।
फूलों की माला : नागा साधुओं के कमर में फूलों की माला पहनी देखी जा सकती हैं, वो भी उनके श्रृंगार का एक हिस्सा ही है।
कड़ा/ ड्डिर : साधु अपने पैरों में लोहे या चांदी का कड़ा पहनते है।