चतरा,। नव वर्ष के स्वागत और पिकनिक मनाने के लिए जिले के
पर्यटन स्थल गुलजार होने लगे हैं। इन्हीं पर्यटन स्थलों में लावालौंग
वनप्राणी अभ्यारण में स्थित खैवा-बंदारू जलप्रपात की हसीन वादियां लोगों को
बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है। पिकनिक मनाने और नववर्ष के स्वागत के लिए
यहां भारी भीड़ उमड़ती है।
जिला मुख्यालय से उत्तर पश्चिम की ओर आठ
किलोमीटर और लावालौंग प्रखंड मुख्यालय से पूर्व दस किलोमीटर दूरी पर स्थित
खैवा-बंदारू जलप्रपात अद्भुत है। यहां प्रकृति ने खुबसूरती जमकर लुटाई है।
कई स्थानों पर प्रकृति ने पत्थरों को तराश कर छज्जानुमा आकार गढ़ा है।
यहां दूर से ही लोगों की मन को मोहती है। यहां कई स्थानों पर पुरातात्विक
कलाकृतियां दर्शनीय हैं। पत्थरों को देखकर तो ऐसा लगता है, मानो जल के बहाव
के आगे वे मोम बनकर रह गए हों।
यहां के दह में एक पत्थर फेंक दिया
जाए, तो काफी सुरीली प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है। कहीं पंख फड़फड़ाते कबूतर
तो कहीं कलकल करते और फेन उगलते झरने सैलानियों को बरबस यहां आने का
निमंत्रण देते हैं। यहां चतरा, हजारीबाग, रांची, कोडरमा और रामगढ़ के साथ
विभिन्न जिलों और बिहार राज्य से भी काफी संख्या में सैलानी पहुंचते हैं।
नव वर्ष पर यहां सैलानियों की भीड़ देखते ही बनती है। लोग घर-परिवार व
बच्चों के साथ यहां पहुंचते हैं और पिकनिक मनाते हैं।
पहली जनवरी और मकर संक्राति के दिन उमड़ती है सबसे अधिक भीड़
खैवा-बंदारू
जलप्रपात में वैसे तो सालों भर सैलानियों का आना लगा रहता है लेकिन नव
वर्ष पर एक जनवरी और मकर संक्रांति के मौके पर 14-15 जनवरी को यहां
आगंतुकों की भीड़ देखते ही बनती है। एक जनवरी को लोग यहां पिकनिक के बहाने
आते हैं और यहां की मनोरम वादियों में खो जाते हैं। मकर संक्रांति के मौके
पर स्रान, ध्यान और पुण्य कमाने के लिए आते हैं। इस दिन यहां सैलानियों की
जबरदस्त भीड़ उमड़ती है।
धार्मिक कर्मकांड के लिए पहुंचते हैं लोग
आसपास
के आदिवासी समुदाय के लोग धार्मिक कर्मकांड के लिए यहां पहुंचते हैं। वे
अपने पूर्वजों के अस्थियों को विधि-विधान से यहां विसर्जन करते हैं। खासकर
बुरी साया व जादू टोना से मुक्ति के लिए भी लोग यहां पहुंचते हैं। जिला
मुख्यालय से दक्षिण-पश्चिम में चतरा-रांची वाया चंदवा मुख्य पथ पर बधार से
तीन किलोमीटर की दूरी पर खैवा-बंदारू जलप्रपात स्थित है। जंगलों के बीच में
यह दृश्यावली सभी सुंदरता के सौंदर्य में चमकदार है। बंदारू (दह) जलाशय की
धारा माध्यम से अपना रास्ता बनाती है। यह जलाशय पत्थर की दीवारों को काट
घाटी का निर्माण कर दोनों किनारों की दीवार वाले पत्थरों में कई आकृतियों
के साथ गहरी खाई बनाती है।