इन्दौर। कैंसर और उससे जनित बीमारी का नाम सुनते ही पीड़ित
सहित परिजनों के होश उड जाते है। चिकित्सा विज्ञान में रक्त जनित जटिल
बीमारी के इलाज को इंदौर में संभव करते हुए चिकित्सकों की टीम ने 100 से
अधिक व्यक्तियों को नया जीवन दिया है और यह सब संभव हुआ है, एक बड़ी सोच और
संकल्प के साथ। वर्ष 2016-17 में इंदौर में बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट
की स्थापना की प्लानिंग करते हुए प्रदेश सरकार ने कार्य का क्रियान्वयन
प्रारंभ किया। 4 मार्च 2018 को इस यूनिट में पहला ऑपरेशन हुआ। यह यूनिट
शासन, प्रशासन, चिकित्सा, पैरामेडिकल टीम एवं दानदाताओं की संयुक्त
भागीदारी का उम्दा उदाहरण बनकर देश और दुनिया में उभर रहा है। इस यूनिट की
स्थापना से कई मुरझाती जिंदगियों को नया जीवन मिला है।
जनसम्पर्क
अधिकारी मनीष गुप्ता ने शुक्रवार को जानकारी देते हुए बताया कि महात्मा
गांधी स्मृति मेडिकल कॉलेज अंतर्गत सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बोन मैरो
ट्रांसप्लांट यूनिट में बीते 6 वर्षो में 105 व्यक्तियों का बोन मैरो
ट्रांसप्लांट हुआ है। यह संभव हो सका है एक बड़ी सोच और टीम वर्क और
अत्याधुनिक चिकित्सा सेवा से। इस यूनिट की स्थापना से आमजन के मन में कैंसर
और रक्त जनित बीमारियों से बचाव के लिए एक आशा की किरण जागी है।
प्रशिक्षित चिकित्सकों और स्टाफ टीम मरीजों की परिजन की तरह करती है देखभाल
उन्होंने
बताया कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट की जटिलता को सहज बनाकर चिकित्सा सेवा में
इंदौर की यूनिट दुनियाभर में नाम रोशन कर रही है। इतना ही नहीं शासकीय
चिकित्सालय में जटिल बीमारी के बेहतर और निशुल्क इलाज के असंभव मिथक को
आमजन के मन से दूर करने में एमजीएम मेडिकल कॉलेज इन्दौर के चिकित्सकों एवं
स्टॉफ टीम हर संभव कोशिश कर रही है। अत्याधुनिक मशीनों और प्रशिक्षित
चिकित्सकों तथा स्टॉफ के द्वारा मरीजों की परिजन की तरह देखभाल की जाती है।
करीब डेढ़ से 2 माह तक एक मरीज को ऑपरेशन तथा ऑपरेशन पश्चात की देखभाल का
जिम्मा इसी टीम पर रहता है।
11 माह के नन्हें से लेकर 50 वर्षीय वयस्क को बोन मैरो ट्रांसप्लांट से दिया नया जीवन
इंदौर
की बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट में 11 माह के नन्हें बच्चे से लेकर 50
वर्ष के वयस्क व्यक्ति का सफल ऑपरेशन हुआ हैं। इस यूनिट का पहला ऑपरेशन
इन्दौर निवासी उपेंद्र जैन 50 वर्ष का हुआ। इसके बाद यहां अलग-अलग उम्र के
व्यक्तियों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट हो चुका है। यहां 11 माह से लेकर 20
वर्ष की आयु वर्ग के सर्वाधिक बच्चों तथा 20 से 50 वर्ष की आयु के वयस्कों
के सफल बोन मैरो ट्रांसप्लांट किये जा चुके है।
दुबई, यूपी, बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र सहित मध्यप्रदेश के मरीजों का हुआ इलाज
बोन
मैरो ट्रांसप्लांट के आपरेशन में करीब से 10 से 30 लाख रुपये का खर्च आता
है लेकिन एमजीएम मेडिकल कॉलेज की इस यूनिट में सभी ऑपरेशन नि:शुल्क हुए है,
जिससे पीड़ित परिवारों को चिकित्सकीय लाभ के साथ-साथ आर्थिक रूप से परेशान
होने की पीड़ा से बचाया है। यहां इलाज कराने वालों में दुबई, यूपी, बिहार,
दिल्ली, महाराष्ट्र सहित मध्यप्रदेश के मरीज भी है।
करीब 30 मेडिकल स्टाफ की टीम चिकित्सा क्षेत्र में दे रही पुनीत सेवा
बोन
मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट में करीब 30 मेडिकल स्टाफ की टीम अपनी सेवाएं दे
रही है। इसमें 8 चिकित्सक तथा करीब 30 पैरामेडिकल स्टॉंफ है, जिसमें नर्सेस
एवं अन्य स्टाफ है। भारतीय मूल के भोपाल निवासी अमेरिका के चिकित्सक डॉ.
प्रकाश सतवानी, डॉ सुधीर कटारिया, डॉ. अक्षय लाहोटी, डॉ. उपेन्द्र जैन, डॉ.
राहुल भार्गव, एम्स नई दिल्ली के चिकित्सक, डॉ. प्रीती मालपानी, डॉ.
प्राची चौधरी, डॉ. सुमित शुक्ला सहित उनकी टीम पूरी शिद्दत से अपनी सेवाएं
देकर चिकित्सा क्षेत्र में इंदौर के नाम को आगे बढा रहे है। इस पूरी टीम को
हर संभव सहयोग और समन्वय का कार्य एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. संजय
दीक्षित द्वारा किया जाता है।
चिकित्सकों एवं पैरामेडिकल टीम को बढ़ाने हेतु किये जाएंगे विशेष प्रयास
संभागायुक्त
दीपक सिंह ने बताया कि शासन, प्रशासन, मेडिकल टीम और दानदाताओं के प्रयास
से कई जिंदगियों को बचाया गया है। इस यूनिट को और बेहतर बनाने के विशेष
प्रयास निरंतर जारी रहेंगे। साथ ही चिकित्सकों एवं पैरामेडिकल टीम की
संख्या बढ़ाने पर भी विशेष प्रयास किया जाएगा ताकि अधिक से अधिक व्यक्तियों
को बोन मैरो ट्रांसप्लांट के माध्यम से इलाज मिल सके।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट कर हमारे बच्चों एवं परिजनों को नया जीवन मिला है
खरगोन
जिले के ग्राम बड़गांव निवासी बंकिम सेन ने बताया मेरे 11 वर्षीय बेटे
कौशिक का बोन मैरो ट्रांसप्लांट का सफल ऑपरेशन हुआ वह अब स्वस्थ है। भोपाल
निवासी रमेश चन्द्र खामरा ने बताया 12 वर्षीय पोती रेणुका और 11 वर्ष के
पोते रौनक को जन्म के करीब 6 माह से रक्त चढ़ाया जा रहा था। बोन मैरो
ट्रांसप्लांट से हमारे बच्चों का नया जीवन मिल गया है। ऐसे ही कई माता और
पिता और उनके परिजन चिकित्सकों और पैरामेडिकल स्टाफ को भगवान से कम नहीं
मानते है। वे कहते है कि इलाज का इतना खर्च था कि हमसे यह इलाज संभव नहीं
था लेकिन प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, दानदाताओं की आर्थिक मदद और
चिकित्सकों की मेहनत से हमारे पीड़ित परिजन नया जीवन खुशहाली से जी रहे है।