वाराणसी,। शारदीय नवरात्र के पहले दिन गुरुवार को नमामि गंगे के
सदस्यों ने संकठा घाट पर स्वच्छता अभियान चलाया। सदस्यों ने घाट के अलावा
गंगा किनारे फेंकी गई पूजा सामग्रियों को कूड़ेदान तक पहुंचाया। घाट पर
स्वच्छता की अलख जगाने के दौरान नमामि गंगे के काशी क्षेत्र संयोजक राजेश
शुक्ला ने संकठाघाट के ऐतिहासिक तथ्यों से भी मौजूद लोगों को परिचित कराया।
उन्होंने बताया कि संकठा घाट को शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा से पहचान मिली
है। हिमालय से लेकर गंगा सागर तक घाटों की कई ऐतिहासिक तो कई पौराणिक
श्रृंखला में से एक महत्वपूर्ण कड़ी है। उन्होंने बताया कि संकठा घाट के
ऊपर ऐतिहासिक सिद्धेश्वरी गली में देवी मां संकठा, मां पितांबरा, मां
कात्यायनी देवी, मां विंध्यवासिनी, मां सिद्धेश्वरी दुर्गा का ख्यात मंदिर
बना हुआ है। इसी सिद्ध क्षेत्र में श्री काशी विश्वनाथ की आत्मा स्वरूप
आत्मा विश्वेश्वर महादेव विराजित होकर भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। माता
संकठा का मंदिर होने की वजह से कालांतर में घाट का नामकरण उन्हीं के नाम पर
हुआ। इससे पूर्व घाट का विस्तार गंगामहल तक था। अठ्ठारहवीं सदी के मध्य
में गंगा महल घाट पक्का होने के बाद घाट के दो हिस्से हो गए। घाट के इतिहास
को जानने वाले बताते हैं कि शक्ति के बड़े उपासक माने जाने वाले विश्वम्भर
दयाल की पत्नी ने घाट का निर्माण 1825 में कराया। काशीखण्ड के अनुसार
मान्यता है कि संकठाघाट प्राचीन समय में श्मशान घाट ही था। क्योंकि घाट
क्षेत्र में यमेश्वर शिव एवं हरिश्चन्द्रेश्वर मंदिर की स्थापना है।
प्राचीन काल में यम द्वितीया को घाट बड़ा स्नान मेला होने की किंवदंती आज भी
लोग सुनाते हैं। आज भी यम द्वितीया पर घाट पर स्नान करने जानकार लोग आते
हैं।
स्थानीय तीर्थ पुरोहितों के मतानुसार घाट के सम्मुख वीर व
चन्द्र आदि तीर्थ की मान्यता है। घाट पर चिन्तामणि विनायक मंदिर,
बैकुण्ठमाधव, वशिष्ठेश्वर शिव आदि मंदिरों की भी स्थापना है। काशी खंड के
अध्याय 61 में वर्णित कथा के अनुसार संकठा घाट पर हरिश्चंद्र मन्दिर में
स्थापित हरिश्चंद्र विनायक भक्तों को सत्य के मार्ग पर चलने की शक्ति देते
हैं । घाट पर ही बड़ौदा के राजा का महल बना हुआ है। इसे उनकी महारानी ने
बनवाया था। समीपवर्ती क्षेत्रों में गुजराती, मराठी समाज की बहुतायत आबादी
रहती है। घाट पर चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र पर काफी श्रद्धालुओं का
आगमन होता है। दर्शन पूजन के अतिरिक्त भी घाट की विशेष मान्यता होने की वजह
से गंगा दशहरा व दीपावली पर भी घाट पर विशेष आयोजन होते हैं।