काठमांडू। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार द्वारा
राजनीतिक दल विभाजन संबंधी अध्यादेश लाने की तैयारी के बीच विपक्षी दलों के
एक प्रतिनिधिमंडल ने उनसे मुलाकात कर ऐसा नहीं करने के लिए दबाव बनाया है।
प्रतिनिधिमंडल में प्रमुख विपक्षी दल के नेता पुष्प कमल दहाल प्रचण्ड के
नेतृत्व में सभी विरोधी दल के शीर्ष नेताओं की उपस्थिति रही। विपक्षी दलों
को लक्षित करते हुए ही सरकार द्वारा यह अध्यादेश लाने की चर्चा जोरों पर
है।
सोमवार को दिन भर राजनीतिक दल विभाजन संबंधी अध्यादेश लाने की
अटकलों के बीच देर रात को विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं ने प्रधानमंत्री
ओली से मुलाकात कर इस बारे में अपनी चिंताओं से अवगत कराया। नेपाल के
राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह है कि विपक्षी दलों में विभाजन लाने के
उद्देश्य से ही यह अध्यादेश लाया जा रहा है। ओली की नजर खास कर एकीकृत
समाजवादी पार्टी के विभाजन पर है, जो कभी उनकी पार्टी को तोड़ कर बनाया गया
था। अब उसी पार्टी के 10 में से 5 संसद ओली के संपर्क में हैं और वो चाहते
हैं कि सरकार अध्यादेश लाकर उनके दल विभाजन करने के लिए कानूनी रास्ता बना
दे।
प्रधानमंत्री से मुलाकात करने गए माओवादी के प्रचंड, एकीकृत
समाजवादी के माधव कुमार नेपाल, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के राजेंद्र
लिंगडेन और राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के डीपी अर्याल ने प्रधानमंत्री से
इस तरह का अध्यादेश नहीं लाने का आग्रह किया। जवाब में ओली ने कहा कि जिस
समय आप लोग सत्ता में थे, उस समय मेरी पार्टी में विभाजन करने के लिए इसी
तरह का अध्यादेश लेकर आए थे और मेरी पार्टी का विभाजन किया था तो अब किस
नैतिकता के आधार पर आप लोग मुझसे अध्यादेश रोकने के लिए कह सकते हैं।
प्रचंड
के विरोधी दल की तरफ से प्रधानमंत्री से कहा गया कि लगभग दो तिहाई वाली
बहुमत की सरकार होने के बावजूद अध्यादेश के मार्फत कोई भी कानून बदलना ठीक
नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार को तत्काल संसद का अधिवेशन बुला कर संसद
में इस संबंध में बिल पेश करना चाहिए। इसी तरह एकीकृत समाजवादी के अध्यक्ष
माधव नेपाल ने कहा कि सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए राजनीतिक दल विभाजन
संबंधी अध्यादेश लाकर आम लोगों की समस्याओं से लोगों का ध्यान भटकाने का
प्रयास कर रही है। जवाब में ओली ने कहा कि सरकार को किस रस्ते से कानून
लाना है, यह उसे अच्छी तरह पता है।
इस बैठक के बाद राष्ट्रीय
स्वतंत्र पार्टी के उपाध्यक्ष डीपी अर्याल ने बताया कि सरकार की नीयत सभी
विरोधी दलों में सेंध लगाने की है। बाहर से दिखने में यह एकीकृत समाजवादी
पार्टी के विभाजन के लिए लाया जा रहा है परन्तु असंतुष्टि तो माओवादी
पार्टी में भी है। इसी तरह जनता समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय स्वतंत्र
पार्टी में भी असंतुष्टि है। यदि सरकार अध्यादेश लाती है तो कोई भी विरोधी
दल टूटने से बच नहीं पाएगा।
इस समय नेपाल के कानून में किसी भी
राजनीतिक दल के विभाजन करने के लिए 40 प्रतिशत केन्द्रीय सदस्य और 40
प्रतिशत सांसद की आवश्यकता होती है। विरोधी दलों का विभाजन करने के लिए ओली
सरकार की तरफ से इस 40 प्रतिशत को घटाकर 20 प्रतिशत करने और सांसद तथा
केंद्रीय सदस्य दोनों की अनिवार्यता को समाप्त करते हुए केन्द्रीय सदस्य या
सांसद में से कोई भी एक होने पर विभाजन को मान्यता दिए जाने का कानूनी
प्रावधान बनाने के लिए अध्यादेश लाने की लगभग पूरी तैयारी है।