कोलकाता। देश के जाने-माने अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय का आज (1 नवंबर)
को दिल्ली में निधन हो गया। उनकी गणना न केवल अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों
में होती है, बल्कि भारतीय महाकाव्यों और संस्कृति में उनकी गहरी रुचि और
योगदान के लिए भी उन्हें विशेष रूप से जाना जाता है। उनका जीवन आर्थिक,
सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान से भरा हुआ था,
जिसने उन्हें एक प्रतिष्ठित विद्वान और अर्थशास्त्री के रूप में स्थापित
किया।
विवेक देबरॉय का जन्म 25 जनवरी 1955 को मेघालय के शिलांग में
एक बंगाली हिंदू परिवार में हुआ था। उनके दादा-दादी विभाजन के बाद पूर्वी
पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के सिलहट जिले के पाइल गांव से 1948 में पलायन
कर भारत आए थे। उनके पिता भारतीय लेखा और लेखापरीक्षा सेवा में अधिकारी
थे। देबरॉय की शिक्षा की शुरुआत पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में
स्थित रामकृष्ण मिशन विद्यालय, नरेंद्रपुर से हुई। इसके बाद उन्होंने
कोलकाता के प्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी कॉलेज और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स
में पढ़ाई की। इसके बाद वे कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में फ्रैंक हॉन के
मार्गदर्शन में अध्ययन के लिए गए, जहां उन्होंने सूचनाओं को सामान्य संतुलन
ढांचे में एकीकृत करने पर शोध किया। हालांकि अनुसंधान में उन्हें अपेक्षित
सफलता न मिलने के कारण उन्होंने मास्टर डिग्री प्राप्त की और भारत लौट
आए।
देबरॉय ने 2015 से 2019 तक निति आयोग के सदस्य के रूप में काम
किया। उनके योगदान को पहचानते हुए 2015 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित
किया गया। वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के
अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने के बाद उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को
सुधारने और विकास के विभिन्न उपायों पर काम किया। उन्होंने बुनियादी ढांचे
के वर्गीकरण और वित्तपोषण फ्रेमवर्क के लिए एक विशेषज्ञ समिति का भी
नेतृत्व किया, जो 'अमृतकाल' में भारत की आर्थिक विकास यात्रा का मार्गदर्शन
कर रही थी।
देबरॉय केवल अर्थशास्त्र के ही नहीं, बल्कि भारतीय
महाकाव्य साहित्य के भी विशेषज्ञ थे। उन्होंने महाभारत, रामायण और
भगवद्गीता जैसे महाकाव्यों का अंग्रेजी में अनुवाद किया, जो न केवल व्यापक
और गहन अध्ययन का प्रतीक है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत को भी नई
पीढ़ियों तक पहुंचाने का माध्यम बना। उनका महाभारत अनुवाद विशेष रूप से 10
खंडों में है, जो संपूर्ण महाकाव्य का अंग्रेजी में सबसे विस्तृत अनुवाद
माना जाता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने हरिवंश और भागवत पुराण का भी अनुवाद
किया। इन महाकाव्यों का अनुवाद करना उनके लिए एक आध्यात्मिक और बौद्धिक
यात्रा के समान था। इस योगदान ने उन्हें भारतीय संस्कृति के एक विद्वान के
रूप में ख्याति दिलाई।
देबरॉय ने न केवल भारत में बल्कि
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति प्राप्त की। वर्ष 2016 में उन्हें
यूएस-इंडिया बिजनेस समिट द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया
गया और 2022 में ऑस्ट्रेलिया-इंडिया चेंबर ऑफ कॉमर्स द्वारा भी उन्हें
लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। फरवरी 2024 में उन्हें दिवालियापन
कानून के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए इन्सॉल्वेंसी लॉ एकेडमी एमेरिटस
फैलोशिप से नवाजा गया। उनकी उपलब्धियों में प्रमुख योगदान कानून सुधार,
रेलवे सुधार और गरीबी उन्मूलन की दिशा में किए गए कार्य शामिल हैं।
देबरॉय का विवाह सुपर्णा बनर्जी से हुआ था, जो उनके जीवन में एक स्थिरता
का प्रतीक रही हैं। उनके अध्ययन और लेखन में उनका समर्थन विशेष रूप से
उल्लेखनीय है। देबरॉय को यात्रा करना, पढ़ना और भारतीय महाकाव्यों का
अनुवाद करने में गहरी रुचि थी। वे संस्कृत और हिंदी भाषा में भी गहरी रुचि
रखते थे और अक्सर इनका प्रयोग अपने लेखन में करते थे।
देबरॉय के
निधन से भारत के आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में एक अपूरणीय क्षति हुई
है। प्रधानमंत्री मोदी ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि
देबरॉय का योगदान सदैव याद रखा जाएगा। उनकी जीवन यात्रा और कार्य भविष्य की
पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेंगे। उनकी कमी भारतीय अर्थशास्त्र और
सांस्कृतिक अध्ययन के क्षेत्र में लंबे समय तक महसूस की जाएगी।
देबरॉय
के काम और उनकी विद्वता ने उन्हें केवल एक अर्थशास्त्री के रूप में ही
नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक दूत के रूप में भी स्थापित किया। उनका जीवन और
योगदान भारतीय सांस्कृतिक और आर्थिक पुनर्जागरण के प्रतीक के रूप में सदैव
याद किया जाएगा।
(संक्षिप्त परिचय) अर्थशास्त्री विवेक देबरॉय का कोलकाता से रहा है गहरा नाता
