6 दिसंबर को वैदिक अनुष्ठान, सम्मान और सांस्कृतिक प्रस्तुति
रविवार
7 दिसंबर को सुबह 11:30 बजे से 1 बजे तक सहस्र चंद्र दर्शन समापन समारोह,
स्मारिका विमोचन एवं विचार-संवाद कार्यक्रम आयोजित होगा। इसके बाद 1:30 से 3
बजे तक सामूहिक भोजन के साथ कार्यक्रम का विधिवत समापन होगा।
‘मैं’ से ‘हम’ की ओर लौट रहा भारत, 6-7 दिसंबर को महाराष्ट्र के चिखली में मनेगा राष्ट्रसेवा की अखंड साधना उत्सव
नई
दिल्ली: सनातन परंपरा वसुधैव कुटुम्बकम् के भाव से
उभरता भारत तेज रफ्तार, उपलब्धियों और व्यक्तिगत सफलता के शोर से भरा हुआ
है। ऐसे समय में जब समाज 'मैं' से 'हम' की ओर लौटने का रास्ता खोज रहा है,
तब महाराष्ट्र के चिखली में 6 और 7 दिसम्बर 2025 को आयोजित होने जा रहा
सहस्र चंद्र दर्शन समारोह उस जीवन दर्शन की याद दिला रहा है, जिसमें स्वयं
नहीं, राष्ट्र पहले होता है। वरिष्ठ संघ प्रचारक लक्ष्मीनारायण भाला
‘लक्खीदा’ के 81वें वर्ष में प्रवेश के अवसर पर होने वाला यह आयोजन राष्ट्र
साधना की परंपरा का सार्वजनिक उत्सव बनेगा।
वर्ष 1968 में गृहत्याग
कर संघ कार्य में प्रवृत्त हुए लक्खीदा का जीवन उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व
करता है, जिसने सुविधाओं को नहीं, संघर्ष को चुना, पद नहीं, प्रवृत्ति को
अपनाया, प्रसिद्धि नहीं, कर्तव्य को सार्थक माना। आज जब समाज तात्कालिक लाभ
और व्यक्तिगत उन्नति के गणित में उलझा हुआ है, तब ऐसे जीवन चरित्र याद
दिलाते हैं कि राष्ट्र केवल भूगोल नहीं, एक निरंतर चलने वाली साधना है।
श्री भाला ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक के रूप में
राष्ट्रकार्य की शुरुआत की थी। वे पिछले 57 वर्षों से निरंतर समाज, संगठन
और राष्ट्र निर्माण के कार्यों में सक्रिय रहे हैं।
इस
आयोजन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह संत परंपरा, संगठन शक्ति और
सांस्कृतिक चेतना- तीनों धाराओं का संगम बनकर उभर रहा है। एक ओर जहां अखिल
भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वांत रंजन का सानिध्य संगठन की वैचारिक धुरी को
मजबूत करेगा।
वहीं जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम जी महाराज
(हरिद्वार) की उपस्थिति भारतीय आध्यात्मिक विरासत की चेतना को राष्ट्र
विमर्श से जोड़ेगी। स्वामी विष्णुप्रपन्नाचार्य (नागौरिया मठ, राजस्थान)
जैसे संतों का सानिध्य यह संकेत है कि यह आयोजन केवल उत्सव नहीं, बल्कि
संस्कारों का सार्वजनिक पुनर्नविकास है।
पश्चिमी
प्रभाव के बीच भारतीय विचार-दृष्टि के उर्वर भूमि तैयार करने में शामिल
रहे चिंतक दादा साहेब आप्टे (शिवराम शंकर आप्टे) ने 1948 में हिन्दुस्थान
समाचार बहुभाषी न्यूज एजेंसी के रूप में जो बीज बोया था, आज वह भारतीय
भाषाओं की आवाज बन चुका है। श्रीकांत जोशी और लक्ष्मीनारायण भाला इसके
मार्गदर्शक बनकर उभरे। फरवरी 2013 में श्रीकांत जोशी जी के देहावसान के बाद
हिन्दुस्थान समाचार की जिम्मेदारी जिन मजबूत कंधों पर आई, वे थे
लक्ष्मीनारायण भाला ‘लक्खी दा’।
यह समय एजेंसी के लिए संक्रमण का दौर था,
जिसे उन्होंने दृढ़ता, अनुशासन और दूरदृष्टि से संभाला। उनके नेतृत्व में
हिन्दुस्थान समाचार की सरकारी, सामाजिक और मीडिया जगत में साख और मजबूत
हुई। राष्ट्रहित, संतुलित दृष्टि और निर्भीक पत्रकारिता- इन तीन स्तंभों पर
उन्होंने एजेंसी को निरंतर आगे बढ़ाया। कहा जा सकता है कि श्रीकांत जोशी
ने जिस दीप को जलाया, लक्ष्मीनारायण भाला ने उसे राष्ट्रव्यापी उजाले में
बदलने का काम किया।
7 दिसंबर को स्मारिका विमोचन और समापन समारोह
