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भाजपा और कांग्रेस के लिए राजनीतिक दृष्टि से ऊहापोह वाला रहा वर्ष 2024, भाजपा रही फायदे में




देहरादून। वर्ष 2024 समापन की ओर है लेकिन 2024 इस छोटे से राज्य की राजनीति के लिए कई मायने में विशिष्ट रहा। यूं कहें कि जाते-जाते पंचायत चुनाव तक वर्ष 2024 ने कई राजनेताओं को दंश दिया तो कई राजनेताओं की किस्मत चमका दी। हाल फिलहाल स्थानीय निकाय चुनाव में मेयर चुनााव में सुनील उनियाल गामा जैसे भाजपाई दिग्गज को टिकट न दिया जाना उनके लिए 2024 अच्छा नहीं माना जाएगा। इसके ठीक विपरीत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े भाजपा के पदाधिकारी रहे सौरभ थपलियाल को देहरादून महापौर का टिकट मिलना उनके लिए लाॅटरी लेकर आया है। भारतीय जनता पार्टी महापौर चुनाव में देहरादून समेत पूरे प्रदेश में अन्य दलों की तुलना में काफी जीत के करीब रहती है। समीकरण को देखकर यह कहा जा सकता है कि स्थानीय निकाय चुनाव में भी भाजपा आगे रहे। केवल स्थानीय चुनाव ही नहीं वर्ष 2024 के चुनााव में कई दिग्गजों की किस्मत ने उन्हें राजनीति में अर्श से फर्श और फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया। उत्तराखंड के पांच लोकसभा सांसदों के निर्वाचित होने के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट को लगातार शीर्ष पर पहुचाया गया। प्रदेश अध्यक्ष बनने के साथ-साथ उन्हें राज्यसभा सांसद भी बनाया गया जो अपने आप में विशिष्ट है। इसी भाजपा के दूसरे दिग्गज सांसद नरेश बंसल को राष्ट्रीय सह कोषाध्यक्ष बनाये जाने के साथ-साथ कई अन्य व्यवस्थाओं में भी जोड़ा गया जो उन्हें बुलंदियों पर ले जाने वाला है।

2024 के राजनीतिक परिदृश्य की चर्चा की जाए तो इस वर्ष तीन उप विधानसभा चुनाव हुए जिसमें दो में कांग्रेस और एक में भाजपा ने बाजी मारी। हाल फिलहाल हुए उप चुनाव में भाजपा की महिला नेत्री एवं महिला मोर्चा अध्यक्ष आशा नौटियाल ने बाजी मारी। उनकी किस्मत इस साल काफी बुलंद रही। राजनीतिक दृष्टि से जाए तो उत्तराखंड की राजनीतिक विरासत भी साल दर साल बदलती रहती है पर 2024 इन सबसे अलग है। पूरे वर्ष भर इस बार राजनीति भावी और प्रभावी रही। तीन विधानसभा उप चुनााव के कारण वर्ष भर राजनीतिक गर्मी बनी रही। पहले उम्मीदवाराें का चयन और बाद में उन्हें जितने की कसरत दिसम्बर तक बनी रही। इस कारण यह वर्ष महत्ववपूर्ण रहा। वर्ष 2024 कांग्रेस की तुलना में भारतीय जनता पार्टी के लिए भाग्यशाली रहा। इसका कारण इसी साल सम्पन्न लोकसभा चुनााव में पांच की पांच सीटें भाजपा द्वारा जीत लिया जाना है। भारतीय जनता पार्टी ने यूं तो उम्मीदवार चयन से ही बढ़त ले ली थी और जीत की हैट्रिक लगाई लेकिन कांग्रेस के लिए यह वर्ष बहुत अच्छा नहीं माना जाएगा। लोकसभा चुनाव में शून्य पर आउट हुई कांग्रेस को उम्मीदवार चयन से लेकर जीत तक के लिए लाले पड़ गए। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के नेतृत्व में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल चुनाव नहीं जीत पाए और पौड़ी से चुनाव हार गए। इसके ठीक विपरीत भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी ने पौड़ी लोकसभा जीत ली जो उनके लिए महत्वपूर्ण रही। इसके ठीक विपरीत लोकसभा सांसद पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को संगठन ने इस बार टिकट नहीं दिया। ठीक यही स्थिति लोकसभा सीट की भी रही जहां पूर्व मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय मंत्री रहे डा. रमेश पोखरियला निशंक को टिकट नहीं दिया गया। उनके स्थान पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को टिकट दिया गया और वह जीत भी गए। डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक 2019 में लोकसभा सांसद रहे लेकिन इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया गया। जबकि अन्य सभी तीन पुराने प्रत्याशियों पर संगठन ने दांव खेला। इनमें महारानी माला राज्य लक्ष्मी शाह, अजय टम्टा एवं अजय भट्ट के नाम शामिल है। 2024 अजय टम्टा के लिए इस मामले में महत्वपूर्ण रहा कि उन्हें केंद्र में राज्यमंत्री का दायित्व दिया गया जबकि इससे पूर्व अजय भट्ट केंद्रीय राज्य मंत्री थे। सांसद चुने जाने के बाद भी उन्हें इस बार मंत्री नहीं बनाया गया जो अपने आप में अलग है।

2024 भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट के लिए सबसे ज्यादा लाभकारी रहा। महेंद्र भट्ट के नेतृत्व में हुए चुनाव में भाजपा ने बाजी मारी और महेंद्र भट्ट को अध्यक्ष के साथ-साथ सांसद भी बना गया गया। जबकि 2022 में विधानसभा चुनाव के दौरान महेंद्र भट्ट चुनाव हार गए थे। बद्रीनाथ सीट पर कांग्रेस का कब्जा भी एक महत्वपूर्ण एक राजनीतिक क्रिया कलाप है। जिन तीन विधानसभाओं में उप चुनाव हुए थे उनमें मंगलौर, बद्रीनाथ और केदारनाथ विधानसभा सीटें शामिल हैं। मंगलौर विधानसभा से 2022 में बसपा प्रत्याशी सरबत करीम अंसारी विधायक बने। उनके निधन के बाद 2024 में काजी निजामुद्दीन विधायक बने और मंगलौर के साथ-साथ बद्रीनाथ सीट भी कांग्रेस की झोली में गई। बद्रीनाथ सीट कांग्रेस के लखपत बुटोला ने जीती। इस सीट से भाजपा उम्मीदवार राजेंद्र भंडारी चुनाव हार गए। वह कांग्रेस से भाजपा में आए थे। कुल मिलाकर स्थानीय निकाय चुनाव अब सर पर है। 27 दिसम्बर से 30 दिसम्बर तक नामांकन की तिथि के कारण राजनीतिक दलों को काफी परिश्रम करना पड़ रहा है और सर्दियों में भी गर्माहट आयी है।

भाजपा की जीत को जहां भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और सांसद महेंद्र भट्ट कार्यकर्ताओं के परिश्रम और शीर्ष नेतृत्व की जीत मानते हैं, वहीं कांग्रेस के सूर्यकांत धस्माना कहते हैं कि हमारी ओर से कमी रह गई जिसके कारण हमारे उम्मीदवार नहीं जीते। कुल मिलाकर राजनीतिक दृष्टि से यह वर्ष भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए कुछ हाताशा, कुछ निराशा और ऊहापोह वाला रहा।