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भारत विभाजन की विभीषिका और हिंदू बंगालियों का संकट विषय पर कोलकाता में संगोष्ठी


कोलकाता,  । मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़ (मकाइआस) और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च एंड डेवलपमेंट (सीपीआरडी) के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार रात कोलकाता में “भारत विभाजन की विभीषिका और हिंदू बंगालियों का संकट” विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई। मुख्य वक्ता परमाणु वैज्ञानिक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्वी क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख डॉ. जिष्णु बसु थे। इसके अलावा मकाइआस के निदेशक डॉ. स्वरूप प्रसाद घोष और श्रीनिवास मैन्टनर ने भी अपने विचार रखे।

बसु ने कहा कि 1947 में स्वतंत्रता के साथ ही बंगाल का विभाजन हुआ, जिसने लाखों हिंदू बंगालियों को विस्थापित कर दिया। उस समय पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) से शरण लेने वाले हिंदुओं की संख्या लाखों में थी। विभाजन के बाद 1951 तक लगभग 20 लाख से अधिक लोग पश्चिम बंगाल आए, 1960 तक करीब 10 लाख शरणार्थी और जुड़ गए और 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान करोड़ों शरणार्थियों का प्रवाह हुआ, जिनमें बड़ी संख्या में हिंदू बंगाली यहीं बस गए। इन लगातार पलायनों ने पश्चिम बंगाल की सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय संरचना को गहराई से बदल दिया।

बसु ने यह भी रेखांकित किया कि पिछले सात दशकों में पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात बढ़ा है। 1951 में यह 19.85 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 27 प्रतिशत हो गई। वक्ताओं के अनुसार, बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ का असर सीमावर्ती जिलों मुर्शिदाबाद, नदिया और उत्तर 24 परगना में स्पष्ट दिखता है, जिससे संसाधनों पर दबाव, साम्प्रदायिक हिंसा और क्षेत्रीय अस्थिरता की आशंका बढ़ रही है।

स्वरूप घोष ने कहा कि विभाजन की पीड़ा को याद रखना और आज के जनसांख्यिकीय बदलावों को समझते हुए समाधान खोजना समय की जरूरत है। उन्होंने पूरे बंगाल में जनसंख्यिकी की बदलाव के प्रचार प्रसार पर बल दिया और लोगों से इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने की बात कही।