जिनेवा, । दुनिया भर के मानवाधिकार संगठनों और प्रवासी समुदायों
ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ते हिंसक हमलों और उत्पीड़न का
मुद्दा गंभीरता से उठाया। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के मुख्यालय
में अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर यहां आयोजित 18वें सत्र में हिस्सा लेते हुए
इन संगठनों के प्रतिनिधियों ने बांग्लादेश में हिंदू, बौद्ध, ईसाई और
आदिवासी समूहों पर हो रहे हमलों का विस्तृत विवरण पेश करते हुए चिंता
जतायी। सभी संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र से तत्काल हस्तक्षेप कर बांग्लादेश
में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की।
सत्र में
अपना पक्ष रखने वाले संगठनों में ब्यूरो ऑफ ह्यूमन राइट्स एंड जस्टिस
(बीएचआरजे), केअर्स ग्लोबल, एनआईसीई फाउंडेशन, ह्यूमन राइट्स कांग्रेस फॉर
बांग्लादेश (एचआरसीबीएम), फ्रांस की जस्टिस मेकर्स बांग्लादेश (जेएमबीएफ),
स्विट्जरलैंड की सेक्युलर बांग्लादेशी डायस्पोरा, ग्लोबल डायस्पोरा
कम्युनिटी (बांग्लादेश), ऑल यूरोपियन मुक्ति योद्धा संगठन, इंटरनेशनल फोरम
फॉर सेक्युलर बांग्लादेश (स्विट्जरलैंड), प्रोबाशी टांगाइल कल्चर
फ्रैंकफर्ट आदि संस्थाएं शामिल रहीं।
वक्ताओं ने कहा कि 1971 में
स्वतंत्रता के बाद से ही बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय सामाजिक और
प्रशासनिक भेदभाव में जी रहे हैं, लेकिन 2024 के बाद स्थिति अत्यंत भयावह
रूप धारण कर चुकी है। अगस्त 2024 में हसीना सरकार के पतन के बाद प्रो.
मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के तहत कट्टरपंथी तत्वों के
प्रभाव में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और भी कमजोर पड़ी है।
मानवाधिकार
समूहों के अनुसार पिछले एक वर्ष में 154 हिंदुओं की हत्या, 197 महिलाओं के
साथ दुष्कर्म और हजारों घरों एवं व्यवसायों पर हमले, तोड़फोड़ और आगजनी की
घटनाएं हुईं। सैंकड़ों मंदिर और चर्चों को निशाना बनाया गया। सितंबर 2024
में खागराजारी और रंगामाटी में पहाड़ी जनजातियों पर हुए हमलों में छह लोगों
की मौत और सौ से अधिक घायलों की पुष्टि की गई, जबकि 375 से अधिक दुकानों
को लूटा गया।
प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि अंतरिम सरकार के
कार्यकाल में हिंदू अधिकारियों और शिक्षकों को सुनियोजित तरीके से सरकारी
पदों से हटाया जा रहा है। कई वरिष्ठ अधिकारियों और 169 से अधिक शिक्षकों को
जबरन इस्तीफा देने या सेवा से बाहर किए जाने की घटनाएं उजागर की गईं।
पुलिस विभाग से भी हिंदू अधिकारियों को हटाए जाने की रिपोर्टें सामने आईं।
सम्मेलन
में सांस्कृतिक स्वतंत्रता पर बढ़ते प्रतिबंधों पर भी गंभीर चिंता जताई
गई। वक्ताओं के अनुसार संगीत, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को रोका जा
रहा है, कलाकारों और लेखकों पर हमले हो रहे हैं। इसके अलावा इस्कॉन से
जुड़े चिन्मय कृष्ण दास प्रभु को एक वर्ष से बिना आरोप जेल में रखने का
मुद्दा भी जोरदार तरीके से उठाया गया।
बीएचआरजे के अध्यक्ष दीपन
मित्रा ने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की आबादी को उनकी धार्मिक
पहचान के आधार पर समाप्त किया जा रहा है। उन्होंने चिन्मय कृष्ण दास प्रभु
की तत्काल रिहाई और ईशनिंदा के झूठे आरोपों पर होने वाले हमलों को रोकने की
मांग की।
एचआरसीबीएम की जया बर्मन ने बताया कि 1971 में 30% रही
अल्पसंख्यक आबादी आज 9% से भी नीचे जा चुकी है और इसका मुख्य कारण
राज्यस्तरीय भेदभाव है। संगठन ने 2022 में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के
दस्तावेज अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय को सौंपे थे।