फिल्म: तू मेरी मैं तेरा तू मेरी
कास्ट: कार्तिक आर्यन, अनन्या पांडे, नीना गुप्ता, जैकी श्रॉफ, टिकू तलसानिया और चांदनी भाभड़ा
निर्देशक: समीर विद्वांस
जॉनर: रोमांटिक कॉमेडी ड्रामा
रेटिंग्स: 01/5 स्टार्स
कहानी
(फिल्म रिव्यू) बड़े नाम, छोटी फिल्म : तू मेरी मैं तेरा तू मेरी बनी निराशा की कहानी
रोमांटिक
कॉमेडी-ड्रामा के नाम पर पेश की गई फिल्म 'तू मेरी मैं तेरा तू मेरी'
सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है। कार्तिक आर्यन और अनन्या पांडे जैसे
चर्चित नामों के बावजूद समीर विद्वांस के निर्देशन में बनी यह फिल्म
दर्शकों को बांधने में पूरी तरह नाकाम साबित होती है। कमजोर कहानी, फीकी
परफॉर्मेंस और बेजान म्यूजिक के चलते हम इसे सिर्फ 1 स्टार की रेटिंग देते
हैं।
फिल्म की शुरुआत एक भव्य शादी से होती है, जहां
रेहान (कार्तिक आर्यन) की एंट्री दिखाई जाती है। शादी की वेडिंग प्लानर
होती हैं उनकी मां पिंकी मेहता (नीना गुप्ता)। दूसरी तरफ जैकी श्रॉफ एक
रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर के रूप में नजर आते हैं, जिनकी बेटी का किरदार अनन्या
पांडे निभा रही हैं।
कहानी तब आगे बढ़ती है जब अनन्या क्रोएशिया ट्रिप पर
जाती हैं और एयरपोर्ट पर उनकी मुलाकात कार्तिक से होती है। यहीं से जबरन
ठूंसा गया फ्लर्ट और बनावटी नोंक-झोंक शुरू हो जाती है। फिल्म का पहला
हिस्सा सलमान खान–करिश्मा कपूर की 'दुल्हन हम ले जाएंगे' की याद दिलाता है,
लेकिन बिना उस फिल्म की मासूमियत और मज़े के।
विदेश यात्रा, झगड़े और फिर
अचानक प्यार, सब कुछ बेहद प्रेडिक्टेबल है। कहानी में थोड़ा सा भी नयापन
नहीं है। सेकंड हाफ में पिता-बेटी के इमोशनल एंगल को जबरदस्ती खींचा गया है
और आखिरकार कहानी एक टिपिकल बॉलीवुड हैप्पी एंडिंग पर खत्म हो जाती है, जो
किसी तरह का असर नहीं छोड़ती।
कार्तिक आर्यन से
एक चार्मिंग रोमांटिक परफॉर्मेंस की उम्मीद थी, लेकिन कई सीन में वे
ओवरएक्टिंग करते नजर आते हैं। उनके डायलॉग्स और एक्सप्रेशंस जरूरत से
ज्यादा लाउड लगते हैं।
अनन्या पांडे इमोशनल सीन्स में कमजोर साबित होती
हैं, एक्सप्रेशंस और बॉडी लैंग्वेज में गहराई की साफ कमी दिखती है। नीना
गुप्ता ठीक-ठाक रहती हैं, लेकिन उनका टेलेंट पूरी तरह इस्तेमाल नहीं किया
गया। जैकी श्रॉफ अपने किरदार में जरूर जमे हुए नजर आते हैं, लेकिन उनके पास
करने को बहुत कम है।
कुल
मिलाकर 'तू मेरी मैं तेरा तू मेरी' एक बेहद प्रेडिक्टेबल और कमजोर फिल्म
बनकर रह जाती है। न इसकी कहानी में दम है, न स्क्रीनप्ले में कसाव और न ही
कलाकारों की परफॉर्मेंस इसे संभाल पाती है।
कॉन्सेप्ट में भले ही संभावना
थी, लेकिन खराब लेखन और खिंचे हुए क्लाइमेक्स ने फिल्म को बोरियत से भर
दिया है। सिनेमाघरों में जाकर इसे देखना वक्त और पैसे दोनों की बर्बादी है।
बेहतर होगा कि दर्शक इसे ओटीटी रिलीज़ तक इंतजार करके ही देखें।





