नई
दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रीय
मानवाधिकार दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि प्रत्येक नागरिक की गरिमा
और अधिकारों पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। भारत की सांस्कृतिक परंपरा
वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत पर आधारित है, जो सार्वभौमिक मानवाधिकारों की
भावना को मजबूत करती है।
प्रत्येक नागरिक की गरिमा और अधिकारों पर कोई समझौता नहीं हो सकता : राष्ट्रपति
राजधानी दिल्ली में हुए इस कार्यक्रम
में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन,
आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति बिद्युत रंजन सारंगी, विजया भारती सयानी,
प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव पीके मिश्रा तथा संयुक्त राष्ट्र महासचिव की
समन्वयक अरेती सिएनी सहित तमाम लोग मौजूद रहे।
इस मौके पर राष्ट्रपति मूमू
ने आयोग के हिंदी जर्नल नई दिशाएं और अंग्रेजी जर्नल जर्नल आफ द एनएचआरसी
का वर्ष 2024- 25 का संस्करण जारी किया। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि
भारत ने सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा पत्र के निर्माण में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई थी और उसकी मूल भावना मानव गरिमा, समानता और स्वतंत्रता भारत
की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि मानवाधिकार और विकास परस्पर
जुड़े हैं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, स्वच्छ पानी,
स्वच्छता और सामाजिक सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं सभी नागरिकों तक
पहुंचाना मानवाधिकारों की पूर्ति का आधार है। एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल
स्कूल और पीएम श्री स्कूल जैसे संस्थानों ने वंचित वर्गों के छात्रों के
लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराई है। आवास और खाद्य सुरक्षा योजनाओं
से करोड़ों लोगों को लाभ मिला है जिससे उन्हें सम्मानपूर्ण जीवन जीने का
आधार मिला है।
उन्होंने कहा कि हाल के श्रम सुधारों और सामाजिक सुरक्षा
प्रावधानों से श्रमिकों के अधिकार और सुदृढ़ हुए हैं। सुदूर और सीमावर्ती
क्षेत्रों में रहने वाले सभी नागरिकों तक आवश्यक सुविधाएं पहुंचाना सरकार
और समाज की साझा जिम्मेदारी है। समावेशी विकास का अर्थ है कि विकास की
यात्रा में कोई भी व्यक्ति पीछे न रह जाए।
