पश्चिमी सिंहभूम: जिले का नोआमुंडी प्रशासनिक खंड अब वह पहला क्षेत्र बन गया है जहां हर
पात्र दिव्यांग व्यक्ति की पहचान की गई, उनका प्रमाणन किया गया और उन्हें
उपयुक्त सरकारी कल्याण योजनाओं से जोड़ा गया।
इसके तहत रणनीति जमीनी स्तर से लागू
हुई। स्थानीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को सभी 21 प्रकार की दिव्यांगताओं की
पहचान करने का प्रशिक्षण मिला। डिजिटल ऐप की मदद से प्रत्येक लाभुक की
वास्तविक समय की जानकारी दर्ज की गई। पंचायतों और सरकारी विभागों को इस
प्रक्रिया का सहभागी बनाया गया, ताकि यह समावेशन केवल एक कार्यक्रम नहीं,
बल्कि व्यवस्था का हिस्सा बन सके। परिणाम स्वरूप—कुछ ही महीनों में
नोआमुंडी ने 10० प्रतिशत दिव्यांग पहचान और प्रमाणीकरण का कीर्तिमान
स्थापित कर दिया।
नोआमुंडी बना झारखंड का पहला प्रखंड, जहां हर दिव्यांग व्यक्ति जुडा सरकारी योजनाओं से
अब
तक ग्रामीण भारत में अधिकतर दिव्यांग लोग प्रशासनिक ढांचे से परे और
सरकारी निगाहों से दूर रहे हैं। जागरूकता, प्रशिक्षण और डेटा सिस्टम की कमी
के कारण वे अक्सर योजनाओं के लाभ से वंचित रह जाते हैं। नोआमुंडी भी इसी
स्थिति से जूझता रहा था। लेकिन सबल ने इस अदृश्यता को चुनौती दी। आर पी
डब्लूयूडी एक्ट 2016 की भावना के अनुरूप कार्यक्रम ने लक्ष्य रखा—किसी एक
को भी पीछे नहीं छोड़ा जाएगा।
